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श्रुतदीप-१
भावपूजा एम साचवी जी, सत्य बजावो रे घंट।
त्रिभवन मांहे ते विस्तरे जी, टाले कर्मनो कंट॥१५॥ सहकर. टबार्थ - एहवी रीते भावपूजा निर्मल चित्ते साधवी, सत्य रूपिओ घंट वजाडवो। तेहनो सद्द त्रिण भुवनने विषे विस्तरे तेणे करी दुष्ट कर्मनो नास करे॥१५॥
इणि परे भावना भावतां जी, साहेब जस सुप्रसन्न।
जनम सफल जग तेहनो जी, तेह पुरुष धन्न धन्न॥१६॥ सुहंकर. टबार्थ - एहवी रीते भावना भावता थका साहेब सुप्रसन थाउं जस कीर्ति आपो तो माहरो जन्म सफल थाइ, हुं कृतार्थ थाउं, जगतमाहे ते पुरुषनो धन्य आत्मा जाणवो॥१६॥
परम पुरुष प्रभु सामलाजी, मानो ए मुज सेव। दूर करो भव आमलाजी, वाचक जस कहे देव ॥१७॥ सुहंकर.
॥इति श्री सांमलिया पार्श्वनाथ- स्तवन॥ टबार्थ- हे! परम पुरुष परमात्मा सामलिया पार्श्वनाथ! ए माहरी अरजी सांभलीने सेवा आपो अमें माहरा भवो भवना कर्म रूपी आमला ते वेगला करो। एहवी रीते जसविजयजी कहे छे हे! देवाधिदेव!॥१७॥
॥इति श्री सामलिया पार्श्वनाथनाथ स्तवन टबार्थ संपर्ण।
प्रत ला. द.नं ४०९०