________________
शामळापार्श्वनाथस्तवन सह बालावबोध
११५
टबार्थ - जे निर्माल्य फुलप्रमुख उतारिये ते चित्तनी उपाधि टालवी। भगवंतनो पखाल करतां एम भाववो-जे माहरा आत्मनी निर्मल समाधि थइ।॥७॥
अंगलूहणां बे धर्मनां जी आत्म स्वभाव जे अंग।
जे आभरण पेहराविये जी, ते स्वभाव निज अंग॥८॥ सुहंकर. टबार्थ - अंगलुहणा ते बे प्रकारना धर्मनी सुधता वडे माहरा आत्मस्वभाव वडे स्वभावनो अंग निर्मल थओ। आभरण पेहराविइ ते वेला एहवी भावना भाववी जे-माहरो पोतानो स्वभाव निर्मल छे।।८॥
जे नव वाड विशुद्धता जी ते पूजा नव अंग।
पंचाचार विशुद्धता जी तेह फूल पंचरंग॥९॥ सुहंकर. टबार्थ - जेहवी नव वाड सुध प्रकारे पालिइ ते प्रकारे नव अंगनी पूजा जाणवी। पांच प्रकारे आचारनी शुद्धता ते पांच प्रकार पंचरंगी फूल जाणवा॥९॥
दीवो करतां चिंतवो जी, ज्ञानदीपक सुप्रकास।
नय चिंता घृत पूरियुं जी, तत्त्व पात्र सुविलास ॥१०॥ सुहंकर. टबार्थ- वली दीवो करतां एहवी भावना भाववी-ज्ञानरूपीओ दीवो घटमां प्रकास करो। सात नय चिंतवणा रूपीओ घी पर्यो छे, त्रण तत्त्वरूपीओ पात्र विसाल छे तेमां॥१०॥
धूप रूप अति कार्यता जी, कृष्णागरनो जोग।
शुद्ध वासना महमहे जी, ते तो अनुभव योग ॥११॥ सुहंकर. टबार्थ - धूपरूपी कार्य एहवो कर्म कृष्णागरना जेहवो एहवो। एहनुं सुगुंधिरूप वासना महमहे छे, ते ज्ञानरूपी जोत जीवने प्राप्त थाय||११||
मद स्थानक अड छांडवां जी. तेह अष्ट मंगलिक।
जे नैवेद निवेदीइं जी ते मन निश्चय टेक ॥१२॥ सुहंकर. टबार्थ - आठ मदना स्थानक ते वेगला छांडवाने आठ मंगलिक आलेखवा। जे नैवेद्य धरती वेलाइं ते एहवें मननो निश्चय करशे॥१२॥
लवण उतारी भावीये जी, कृत्रिम धर्मनो रे त्याग।
मंगलदीवो अति भलो जी शुद्धधर्म परभाग॥१३॥ सुहंकर. टबार्थ- लूण उतारती वेलाए एहवी भावना भाववी-मिथ्यात्वादि अक्रित धर्मनो त्याग करवो। मंगल दीवो ते मंगलिक रूप भलो प्रगटवो सुध धर्म उपरे राग धरवो॥१३॥
गीत नृत्य वाजिंत्रनो जी, नाद ते अनहद सार।
समरति रमणी जे करी जी, ते साचो थेईकार॥१४॥ सुहंकर. टबार्थ- गीत गावा नाटिक करवा वाजिंत्र वगाडवा तेहनो भद्द(शब्द) ते अनहद पसरी रह्यो छे। स्मति आत्मानी रमणता करिइ
ते साचो थेईकार नाटक जाणवो॥१४॥
१. सुविशालला. ३. नाद अनाहत सार मु.
२. निश्चलम ४. समरति मु.