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॥श्री शामला पार्श्वनाथ स्तवन॥ (शालिभद्र भोगी होई रह्यो ए देशी)
पूजा विधि माहे भाविइं(ये)जी अंतरंग जे भाव, ते सवि तुज आगळ कहुं जी साहेब सरल स्वभाव॥
सुहंकर अवधारो प्रभु पास (ए टेक) ॥१॥ टबार्थ- श्री वीतरागाय नमो नमः। अथ पार्श्वनाथ- स्तवन भावपूजा रहस्य। सुख = कल्याणना कारक प्रभु श्रीपार्श्वनाथ तारी
पूजाविधिमां अंतरंग भावाना] जे भाववानी छे ते सर्व ताहरि आगल हं स्तवना करूं छं। हे! सरल स्वभावना साहेब नाथ ताहरि आगल कहुं छु हे! सुखना करणहार! ते अवधारो ध्यानमां लो हे! पार्श्वनाथ प्रभु! ॥१॥
दातण करतां भाविये जी प्रभुगुणजल मुख शुद्ध।
उल उतारी प्रमत्तता जी हो मुज निर्मल बुद्ध॥२॥ सुहंकर. टबार्थ - दातण करतां एहवी रीते भावना भाववी के प्रभुना गुणरूपी पांणीथी मारा मुखनी सुधि थाइ छे, अने प्रमाद रूपी उल हूं माहरि उतारि उतारी नाखुं छउं, माटे माहरि बुधि निर्मल थाजो॥२॥
जतनाई(ये) स्नान करिजीइं जी, काढो मेल मिथ्यात।
अंगुछो अंग शोषवी जी, जाणु हूं अवदात॥३॥ सुहंकर. टबार्थ - जयणापूर्वक स्नान मंजन करीने, मिथ्यात्वरुपी मेलने काढो। अने अंगुछो टुवालथी प्रभु प्रेमरूप अंग सुकावी साफ करो एने हूं सिद्धि गणुं छु।।३॥
क्षीरोदकनां धोतीयांजी, चिंतवो चित्त संतोष।
अष्ट कर्म संवर भलो जी आठ पडो मुखकोष॥४॥ सुहंकर. टबार्थ - धोतियां धोला क्षीरोदकना पेहरतां चितने विषे संतोषनी भावना करो। अने आठ पडवालो मुखकोश राखतां मनमा एम विचारो के-जेथी हूं आठ कर्मनो एंधन करनार संवरपणुं ग्रहण करुं छउं॥४॥
ओरसियो एकाग्रताजी केसर भक्ति कल्लोल।
श्रद्धा चंदन चिंतवोजी, ध्यान घोल रंगरोल॥५॥ सुहंकर. टबार्थ - ओरसियो ते एकाग्रतारूप छे, अने ते उपरे घसवानु केसर ते भक्तिनो कल्लोल-लीनता छ। अने चंदन ते शुद्ध श्रद्धा छ। अने घसवा घोल ते ध्यान छे जेथी उत्तम रंग निपजे छे।।५।।
भाल वह आणा भली जी, तिलक तणो ते भाव।
जे आभरण उतारिये जी ते उतारो परभाव॥६॥ सुहंकर. टबार्थ - तिलक [क]रती वखते एहवी भावना करवानी छे के-हे! प्रभु! हूं आपनी आज्ञा मस्तके चडावं छउं। सिरसावत करुं छु अने आभरण घरेणा उतारता एम भाववानुं छे के-हुं परभाव सर्वे छोडि देउं छु, स्वभावने ग्रहण करूं छु ॥६॥
जे निर्माल्य उतारीये जी ते तो चित्त उपाधि। पखाल करतां चिंतवोजी, निर्मल चित्त समाधि॥७॥ सुहंकर.