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________________ श्रुतदीप-१ सामे गहंलीमां कंक, बरास, केसर जेवां मंगल द्रव्यो पाणीमां भेळवी तेनो साथियो करवामां आवतो हशे. हाल केवळ चोखाथी साथियो करवामां आवे छे ते प्रथा कदाच ते समयमा प्रचलित होय के न पण होय. साथियो करवामां वपरातां द्रव्योनुं आध्यात्मिक अर्थघटन करता कविए भक्तिने कंकुनी अने शुभध्यानने बरासनी उपमा आपी छे. सौभाग्यवती स्त्री माटे कंकु तेना जीवन आधार- प्रतीक छे. ते तेने मस्तक पर धारण करे छे. कंकुनी जेम भक्ति पण जीवननो आधार छे अने सदा शिरोधार्य छे तेम कवि कहेवा मांगे छे. कविए शुभध्यानने बरासनी उपमा आपी छे. केम के बरास सफेद होय छे, ठंडक करे छे अने ज्वलनशील छे. बरासनी जेम शुभध्यान पवित्र छे, समतानु कारण छे तेम ज कर्म बाळवा समर्थ छे. (कडी-१) । कोइपण स्त्री सारा काममा पोतानी नजीकनी सखीओने बोलावे. अहीं गहुंली करवा माटे बोलावाती सखीओनो आध्यात्मिक संदर्भ सद्बुद्धि तरीके छे अने गुरुनो आध्यात्मिक संदर्भ अनुभव तरीके छे. आत्मानो अनुभव ज सहुथी मोटो गुरु छे. सधवा स्त्री पोतानी सखीओने कहे छे के तमे आवो अने आनंदमां मस्त बनीने अनुभवरूपी गुरुना गुण गाओ. मनरूपी थाळीमां समकितरूपी मोती भरो. कल्याणमित्र गुरुनी साथे रहो. (कडी-२) ज्ञानाचार' वगेरे आचार अलंकार जेवा छे. ते नवां नवां अलंकार पहेरो. घंटण पहोंचे तेवी संयमनी ओढणी ओढीने आत्मानुभवरूप गुरुना गुण गाओ. संयमनी ओढणी सद्बुद्धिनी रक्षा करे छे. (कडी-३) (अहीं कविए प्राचीन मर्यादानो निर्देश कर्यो छे. चूंटण सुधी पहोंचे तेवी ओढणी ओढवाना संस्कारने घाट ओढवो लाज काढवी एम कहेवाय छे. ) तमे तमारी साथे मैत्री, करुणा, मुदिता अने उपेक्षा नामनी चार सहेलीने पण लेती आवजो. आ चार भावना भव्यजीवनोरे संयोग पामी उदयमां आवे छे. गुरु सामे विविध प्रकारनां वाजिंत्रो वगडावो. अहीं नयवादने३ वाजिंत्रो कहेवामां आव्यां छे. जेम अनेक अलग अलग वाजिंत्रो साथे मळीने संगीत उत्पन्न करे छे तेम पदार्थना अलग अलग अंश बतावता नय साथे मळीने पदार्थ- संपूर्ण दर्शन करावे छे. सधवा स्त्री पोतानी सखीओने कहे छे के तमे नयवादनां वाजिंत्रो साथे अनुभवरूपी गुरुना गुण गाओ जे विरतिरूपी सिंहासन पर बेठा छे. अहीं कवि ए कहेवा मांगे छे के-विरति विना आत्मानो अनुभव प्राप्त थतो नथी. सखीओ ! आ संसारमा मानवभव, पांच इंद्रियो, गुरुनो योग वगेरे सामग्री मळ्वी बहु दुर्लभ छे. तेने सफळ करवानो आ अवसर छे. जो मोक्षमां जq होय तो आ अवसरनो सवायो लाभ लेजो. आ रीते द्रव्यथी कंकु वगेरे द्वारा अने भावथी भक्ति वगेरे द्वारा गहुंली करी जे आत्मानुभवरूपी गुरुना गुण गाय छे ते बहु मोटु पुण्य बांधे छे. तेनां फळ स्वरूपे ते देवलोकमां अनुत्तर विमाननां सुख अनुभवे छे अने आनंदना समूह स्वरूप मोक्ष पामे छे. आम आ गहुंलीमां गुरुगुणस्तवनानो आध्यात्मिकअर्थ व्यक्त को छे. ___ आ लघुकृतिओनुं संपादन अमारा उपकारी पू. मुनिश्रीवैराग्यरतिविजयजी म. ना मार्गदर्शन हेठळ थयुं छे. ते माटे अमे तेमनी प्रत्ये कृतज्ञता अभिव्यक्त करीए छीए. आ अमारुं सर्वप्रथम संपादन छे तेथी तेमां जणाती क्षतिओ विद्वज्जनो सुधारी लेशे एवी विनंति करीए छीए. -- सा. श्रीहर्षरेखाश्रीशिष्या - सा. श्रीजिनरत्नाश्रीशिष्या/प्रशिष्या - सा. मधुरहंसाश्री सा. रत्नहंसाश्री १. ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार आपांच आचारनाघणा भेद छे. २. भव्यजीव मोक्षमां जवाने लायक आत्मा. ३. नय= पदार्थना अनेक अंशमांथी केवळ कोइ एक अंश- ज्ञान. ४. अनुत्तरविमान= जैन परिभाषा मुजब सहुथी उंचो देवलोक
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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