SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्री हु ९७ स्वर्गमांथी नीकळी शंकरनी जटामां झीलाइ. त्यांथी पृथ्वी पर हिमालयमा अवतरी. जैन धर्म आवुं मानतो नथी. जैन धर्म प्रमाणे भरतक्षेत्रनी उत्तरे आवेला हिमवंत पर्वतमांथी गंगा अने सिंधु नदीओ नीकळी छे. आ बन्ने नदीना प्रवाहनी जेम भगवती सूत्रा वचनो पार विनाना छे. सूर्यप्रज्ञप्ति नामनुं प्राभृतः भगवतीसूत्रनुं उपांग छे. भगवतीसूत्र दरिया जेवुं विशाळ छे तेमांथी नीकळतां अर्थो दरियामां उठतां मोजां जेवां छे. दरियामां उठतां मोजां अनंत होय तेम भगवतीसूत्रना अर्थ अनंत छे. कविए अहीं फरी उपमा अलंकार प्रयोज्यो छे. (कडी- २) भगवतीसूत्रमां एक श्रुतस्कंध छे, १०१ अध्ययन छे, १०,००० उद्देशा छे, ३६,००० प्रश्नो छे, २,८८,००० पद छे३. भगवतीसूत्रमां लोक अने अलोकनां स्वरूपनुं वर्णन छे. भगवतीसूत्रनुं खरं नाम विवाहप्रज्ञप्ति (अथवा व्याख्याप्रज्ञप्ति) छे. ४ आ सूत्र आगमोमां सहुथी मोटुं छे. तेमां अनेक व्यक्तिए प्रभुने पूछेला प्रश्नोनो संग्रह छे. मोटे भागे प्रश्नो श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछाया छे. तेथी तेमां गौतमस्वामीनुं नाम घणी वार आवे छे. जेटली वार गौतमस्वामीनुं नाम आवे तेटली वार नाणुं एटले पैसा मूकी भगवतीसूत्रनुं पूजन करवाथी सम्यग्ज्ञान वधे छे. आ रीते पूजन करी सूत्र सांभळवाथी सूत्रनुं बहुमान थाय छे. साथे ज आ सूत्र सांभळती वखते साधु तथा साधर्मिकनी भक्ति पण मनमां प्रेम धरी करवी जोइए. आ सूत्र सांभळनार दरेकने प्रभावना' अर्पण करवी जोइए. आ सूत्र संभळावनार गुरु पर भक्तिराग धारण करवो जोइए. श्रीभगवतीसूत्रनां बहुमानथी आ भवमां अने परभवमां मनोवांछित कार्य सिद्ध थाय छे अने परंपराए मोक्ष मळे छे. आम आ लघुकृति श्रीभगवतीसूत्रनी माहिती आपवा साथे तेना श्रवणथी थता लाभनुं वर्णन करे छे. गुरुगुण गहुंली : कर्ता बीजी कृति नाम विनानी छे छतां तेना विषय प्रमाणे तेने गुरुगुण गहुंली आ नामे ओळखीशुं. आ कृतिना कर्ताए पोतानुं नाम आनंदघन जणाव्युं छे. पण तेओ चोवीसी अने पदोना कर्ता तरीके प्रसिद्ध आनंदघनजी होय तेवी संभावना ओछी छे. चोक्क विगतो न मळे त्यां सुधी तेमने अज्ञात मानवा ज उचित कहेवाशे. गुरुगुण गहुंली : परिचय आ गहुंली मंगलगीत स्वरूप छे. तेमां सहज रीते अध्यात्मना भावो गुंथी लेवामां आव्या छे. तेमां प्रधानपणे गुरुना माध्यमथी आत्माना शुद्ध स्वरूपनी प्राप्तिनुं निरूपण छे. गुरुना सत्कारमां जे व्यक्ति जोडाय छे अने जे सामग्री वपराय छे ते बन्नेनो अहीं आध्यात्मिक संदर्भ विचारवामां आव्यो छे. आ गहुंलीमां एक सधवा स्त्री बीजी सधवा स्त्रीने गुरु समक्ष गहुंली करवानुं आमंत्रण आपी रही छे. ते कहे छे के–सौभाग्यवती स्त्रीओ ! तमे सहु अहीं आवो अने साथियो पूरो. भक्तिरागनुं कंकु घोळो. ६ तेमां शुभध्याननुं बरास॰ मेळवो. साथियो करी नरभवनो लाभ लो. अहीं साथियो करवामां कंकु अने बरास द्रव्यनो उल्लेख थयो छे ते बतावे छे के ते समये गुरु १. प्राभृत दृष्टिवाद नामना बारमां अंगमां १४ पूर्व छे. पूर्वना एक विभागने प्राभृत कहेवाय छे. आनो अर्थ ए थाय के - सूर्यप्रज्ञप्ति नामनुं उपांग पूर्वमांथी आवेलुं छे.. २. आगमोनुं वर्गीकरण छ विभागमां थयुं छे. अंग, उपांग, छेद, मूल, चूलिका, प्रकीर्णक. शरीरनां मस्तक वगेरे मुख्य अवयव अंग कहेवाय अने आंगळी वगेरे अवयव उपांग कहेवाय तेम मुख्य आगम सूत्रने अंग कहेवाय अने तेनी साथै संलग्न सूत्रने उपांग कहेवाय. ३. आगमसूत्रोनो क्रम सरळताथी याद राखवा तेना- श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश अने पद आ प्रमाणे विभाग करवामां आव्या छे. अनेक पदनो एक उद्देश बने, अनेक उद्देशानुं एक अध्ययन बने, अनेक अध्ययननो एक श्रुतस्कंध बने. एक आगममां एक के एकथी वधु श्रुतस्कंध होय. अहीं पद वगेरेनी जे संख्या दर्शाववामां आव हाल उपलब्ध नथी. ४. टीकाकार श्री अभयदेवसू. म . ए तेना विविध अर्थनुं विवरण कर्तुं छे. ५. प्रभावना - प्रेम, बहुमानपूर्वक अपातुं द्रव्य के वस्तु. पहेरामणी. ६. घोळवु = पाणीमां भींजवी एकाकार कर ७. बरास कपूर
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy