________________
श्रुतदीप-१
साधुभगवंतो पण पोताना गुरुना गुणोनुं वर्णन करती के सूत्रनो महिमागान करती गहुंली बनावी आपे छे. स्वाभाविक रीते ज ज्ञानी अने प्रभावसंपन्न साधुभगवंतो द्वारा रचायेली गहुंलीमां गंभीरता, कल्पना अने चमत्कृति सविशेष जोवा मळे छे. मध्यकाळमां साधुभगवंतो द्वारा आवी अनेक गहुंली रचाइ छे अने लखाइ पण छे परंतु तेनी व्यवस्थित नोंध के इतिहास मळता नथी. आवी कृतिओ छुटक छुटक पानांओमां अहीं तहीं वेरायेली जोवा मळे छे. भगवतीसूत्रनी गहुँली : ____ अहीं आवी ज एक अप्रचलित गहुंली- संपादन प्रस्तुत छे. आ कृति कोइ व्यवस्थित हस्तप्रतमां नथी परंतु एक छुटक
ती जोवा मळे छे. पानांना हस्ताक्षर जोतां तेनो लेखनसंवत लगभग वीसमी सदी छे. पानांनी लंबाइ पहोळाइ ११४२५ सें. मी. छे. ९ पंक्ति छे. प्रतिपंक्ति अक्षर छे. स्थिति सारी छे. पूर्ण छे. अंते लेखकनं नाम नथी. प्रत शुद्ध छे. कर्ता:
मध्यकालीन गुजराती साहित्य रचनामां जैन कविओनो फाळो बहु मोटो छे. आ काळमां रचायेलं लगभग सित्तेर टका जेटलं साहित्य जैन कवि
त कृतिना कर्ता श्रीविनयचंद्रनो समय निश्चित नथी. मध्यकाळमां आ नामना पांच कवि थया छे.१ (१) १४मी सदीमां आ. श्री रत्नसिंहसूरिना शिष्य आ. श्रीविनयचंद्रसू. तेमणे 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' तेम ज 'बारव्रतना रासनी
रचना करी छे. 'कल्पनियुक्ति', 'दीपालिकाकल्प' ए संस्कृत कृति तथा 'आनंदप्रथमोपासक संधि' ए अपभ्रंशकृति तेमनी
अन्य रचनाओ छे. (२) सं. १६६०मां तपागच्छना पं. मुनिचन्द्रना शिष्य श्रीविनयचंद्र. तेमणे 'बारव्रतनी सज्झाय' रची छे. (३) १८मी सदीना उत्तरार्धमां श्यामऋषिनी परंपरामां अनोपचंदना शिष्य श्रीविनयचंद्र. तेमणे 'मयणरेहा चोपाई' अने 'सुभद्रा
चोपाईनी रचना करी छे. (४) १८मी सदीना उत्तरार्धमां जिनचंद्र-समयसुंदरनी परंपरामां ज्ञानतिलकना शिष्य श्रीविनयचंद्र. तेमणे 'उत्तमकुमारचरित्र-रास',
चोवीसी, वीसी, 'अगियारअंगनी सज्झाय', 'जिनप्रतिमानिरूपण सज्झाय' वगेरे कृतिओ रची छे. (५) आशरे १८मी सदीना उत्तरार्धमां श्रीविनयचंद्र. तेमणे हिंदी मिश्र गुजरातीमां 'बुड्ढाउपदेशपचीसी सज्झाय' वगेरे कृतिओ
रची छे.
श्रीविनयचंद्र नामना पांच साधुभगवंतमांथी प्रस्तुत कृतिना कर्ता १८मी सदीना उत्तरार्धमां थया होवा जोइए तेवं कृतिनं आंतरिक कलेवर जोता जणाय छे. १८मी सदीना उत्तरार्धमां श्रीविनयचंद्र नामना त्रण साधभगवंत थया छे. तेमांथी प्रस्तुत कृतिना कर्ता कोण छे ते कहेवू मुश्केल छे. परिचय : भगवतीसूत्रनी गहुंली
भगवतीसूत्रनी गहुँली काव्यनी दृष्टिए मनोहर छे. तेमां भगवतीसूत्रनो सामान्य परिचय आपवामां आव्यो छे अने आ महान सूत्र केवी रीते सांभळवू तेनो साधारण विधि दर्शाव्यो छे. कविए अहीं अलंकारो पण प्रयोज्या छे.
जैन धर्ममा ४५ आगमो प्रसिद्ध छे. आगम एटले महावीर स्वामीए अर्थथी कहेला वचनोने तेमना प्रथम शिष्योए गुंथीने रचेला सत्रो. ४५ आगमोमां भगवतीसत्र सहथी मोटं छे. माटे ज कवि कहे छे के -भगवतीसत्रमा जिनवरनां वचनो पार विनाना छे. २ भगवतीसूत्रनी विशाळ्ताने कवि उपमा द्वारा समजावे छे के-ते गंगा नदी जेवा छे. पुराणमां एवी कल्पना छे के-गंगा नदी
१. जूओ : मध्यकालीन गुजराती साहित्यकोश, खंड १ मध्यकाळ पत्र४०८ सं. जयंत कोठारी, (१९८९)
२. जूओ : भगवतीसूत्रनी गहुली कडी-१