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प्राकृत व्याकरणे
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कई। समिद्धी। इद्धी। गिद्धी। किसो। किसाणू। किसरा। किच्छं। तिप्पं। किसिओ। निवो। किच्चा। किई। धिई। किवो। किविणो। किवाणं। विञ्चुओ। वित्तं। वित्ती। हिअं। वाहित्तं। बिंहिओ। विसी। इसी। विइण्हो। छिहा। सइ। उक्किटुं। निसंसो। क्वचिन्न भवति। रिद्धी। कृपा। हृदय। मृष्ट। दृष्ट। दृष्टि। सृष्ट। सृष्टि। गृष्टि। पृथ्वी। भृगु। भुंग। भंगार। शृंगार। शृगाल। घृणा। घुसृण। वृद्धकवि। समृद्धि। ऋद्धि। गृद्धि । कृश। कृशानु। कृसरा। कृच्छ्र। तृप्त। कृषित। नृप। कृत्या। कृति। धृति। कृप। कृपण। कृपाण। वृश्चिक। वृत्त। वृत्ति। हृत। व्याहृत। बंहित। वृसी। ऋषि। वितृष्ण। स्पृहा। सकृत्।
उत्कृष्ट। नृशंस। (अनु.) कृपा, इत्यादि शब्दांत, आदि ऋ चा इ होतो. उदा. किवा, हिययं;
मिटुं :- हा शब्द रस-वाचक असतानाच (ऋ चा इ होतो); इतरत्र (म्हणजे तसा अर्थ नसताना) मट्ठ (असे वर्णान्तर होते); दिटुं....निसंसो. क्वचित् (आदि ऋ चा इ) होत नाही. उदा. रिद्धी (ऋद्धि). (वरील शब्दांचे मूळ संस्कृत शब्द क्रमाने असे:) कृपा.....नृशंस.
(सूत्र) पृष्ठे वानुत्तरपदे ।। १२९।। (वृत्ति) पृष्ठशब्दे अनुत्तरपदे ऋत इद् भवति वा। पिट्टी पट्ठी। पिट्टिपरिट्ठविअं।
अनुत्तरपद इति किम् ? महिवटुं। (अनु.) पृष्ठ हा शब्द (समासात) उत्तर पद नसताना, (त्यातील) ऋ चा इ विकल्पाने
होतो. उदा. पिट्ठी...ट्ठविअं. (पृष्ठ हा शब्द समासात) उत्तर पद नसताना असे का म्हटले आहे ? (कारण पृष्ठ शब्द समासात उत्तर पद असल्यास, क्र चा इ होत नाही. उदा.) महिवटुं.
(सूत्र) मसृण-मृगाङ्क-मृत्यु-शृङ्ग-धृष्टे वा ।। १३०॥ (अनु.) एषु ऋत इद् वा भवति। मसिणं मसणं। मिअंको मयंको। मिच्चु मच्चु। सिंगं
संगं। धिट्ठो धट्ठो।
१ पृष्ठपरिस्थापितम्.
२ महीपृष्ठम्.