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________________ प्राकृत व्याकरणे ८३ कई। समिद्धी। इद्धी। गिद्धी। किसो। किसाणू। किसरा। किच्छं। तिप्पं। किसिओ। निवो। किच्चा। किई। धिई। किवो। किविणो। किवाणं। विञ्चुओ। वित्तं। वित्ती। हिअं। वाहित्तं। बिंहिओ। विसी। इसी। विइण्हो। छिहा। सइ। उक्किटुं। निसंसो। क्वचिन्न भवति। रिद्धी। कृपा। हृदय। मृष्ट। दृष्ट। दृष्टि। सृष्ट। सृष्टि। गृष्टि। पृथ्वी। भृगु। भुंग। भंगार। शृंगार। शृगाल। घृणा। घुसृण। वृद्धकवि। समृद्धि। ऋद्धि। गृद्धि । कृश। कृशानु। कृसरा। कृच्छ्र। तृप्त। कृषित। नृप। कृत्या। कृति। धृति। कृप। कृपण। कृपाण। वृश्चिक। वृत्त। वृत्ति। हृत। व्याहृत। बंहित। वृसी। ऋषि। वितृष्ण। स्पृहा। सकृत्। उत्कृष्ट। नृशंस। (अनु.) कृपा, इत्यादि शब्दांत, आदि ऋ चा इ होतो. उदा. किवा, हिययं; मिटुं :- हा शब्द रस-वाचक असतानाच (ऋ चा इ होतो); इतरत्र (म्हणजे तसा अर्थ नसताना) मट्ठ (असे वर्णान्तर होते); दिटुं....निसंसो. क्वचित् (आदि ऋ चा इ) होत नाही. उदा. रिद्धी (ऋद्धि). (वरील शब्दांचे मूळ संस्कृत शब्द क्रमाने असे:) कृपा.....नृशंस. (सूत्र) पृष्ठे वानुत्तरपदे ।। १२९।। (वृत्ति) पृष्ठशब्दे अनुत्तरपदे ऋत इद् भवति वा। पिट्टी पट्ठी। पिट्टिपरिट्ठविअं। अनुत्तरपद इति किम् ? महिवटुं। (अनु.) पृष्ठ हा शब्द (समासात) उत्तर पद नसताना, (त्यातील) ऋ चा इ विकल्पाने होतो. उदा. पिट्ठी...ट्ठविअं. (पृष्ठ हा शब्द समासात) उत्तर पद नसताना असे का म्हटले आहे ? (कारण पृष्ठ शब्द समासात उत्तर पद असल्यास, क्र चा इ होत नाही. उदा.) महिवटुं. (सूत्र) मसृण-मृगाङ्क-मृत्यु-शृङ्ग-धृष्टे वा ।। १३०॥ (अनु.) एषु ऋत इद् वा भवति। मसिणं मसणं। मिअंको मयंको। मिच्चु मच्चु। सिंगं संगं। धिट्ठो धट्ठो। १ पृष्ठपरिस्थापितम्. २ महीपृष्ठम्.
SR No.007791
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages594
LanguageSanskrit, Marathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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