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प्रथमः पादः
(सूत्र) ओत्कूष्माण्डी-तूणीर-कूर्पर-स्थूल-ताम्बूल-गुडूची
मूल्ये ।। १२४।। (वृत्ति) एषु ऊत ओद् भवति। कोहण्डी कोहली। तोणीरं। कोप्परं। थोरं।
तम्बोलं। गलोई। मोल्लं। (अनु.) कूष्माण्डी, तूणीर, कूर्पर, स्थूल, ताम्बूल, गुडूची आणि मूल्य या शब्दांत,
ऊ चा ओ होतो. उदा. कोहण्डी.....मोल्लं.
(सूत्र) स्थूणा-तूणे वा ।। १२५।। (वृत्ति) अनयोरूत ओत्वं वा भवति। थोणा थूणा। तोणं तूणं। (अनु.) स्थूणा आणि तूण या शब्दांत, ऊ चा ओ विकल्पाने होतो. उदा.
थोणा....तूणं.
(सूत्र) ऋतोऽत् ।। १२६।। (वृत्ति) आदेकारस्य अत्वं भवति। घृतम् घयं। तृणम् तणं। कृतम् कयं।
वृषभ: वसहो। मृगः मओ। घृष्टः घट्ठो। दुहाइअमिति कृपादिपाठात्। (अनु.) (शब्दातील) आदि ऋकाराचा अ होतो. उदा. घृतम...घट्ठो. दुहाइअं
(द्विधाकृतम्) हे रूप कसे होते ? उत्तर) दुहाइअं हा शब्द कृपादिगणात येत असल्याने (या शब्दात ऋ चा इ झाला आहे).
(सूत्र) आत्कृशा-मृदुक-मृदुत्वे वा ।। १२७।। (वृत्ति) एषु आरृत आद् वा भवति। कासा किसा। माउक्कं मऊ।
माउक्कं मउत्तणं। (अनु.) कृशा, मृदुक आणि मृदुत्व या शब्दांत, आदि ऋ चा आ विकल्पाने होतो.
उदा. कासा..... मउत्तणं.
(सूत्र) इत्कृपादौ ।। १२८।। (वृत्ति) कृपा इत्यादिषु शब्देषु आदेर्ऋत इत्वं भवति। किवा। हिययं। मिटुं
रसे एव। अन्यत्र मटुं। दिटुं। दिट्ठी। सिटुं। सिट्ठी। गिण्ठी। पिच्छी। भिऊ। भिंगो। भिंगारो। सिंगारो। सिआलो। घिणा। घुसिणं। विद्ध