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प्रथमः पादः
(अनु.) मसृण, मृगांक, मृत्यु, शृंग, आणि धृष्ट या शब्दांत, ऋ चा इ विकल्पाने
होतो. उदा. मसिणं.....धट्ठो. (सूत्र) उदृत्वादौ ।। १३१॥ (वृत्ति) ऋतु इत्यादिषु शब्देषु आदेरृत उद् भवति। उऊ। परामुट्ठो। पुट्ठो।
पउट्ठो। पुहई। पउत्ती। पाउसो। पाउओ। भुई। पहुडि। पाहुडं। परहुओ। निहुअं। निउअं। विउ । संवुअं। वुत्तंतो। निव्वुअं। निव्वुई। बुंदं। बुंदावणो। वुड्डो। वुड्डी। उसहो। मुणालं। उज्जू। जामाउओ। माउओ। माउआ। भाउओ। पिउओ। पुहुवी। ऋतु। परामृष्ट। स्पृष्ट। प्रवृष्ट। पृथिवी। प्रवृत्ति। प्रावृष्। प्रावृत। भृति। प्रभृति। प्राभृत। परभृत। निभृत। निवृत। विवृत। संवृत। वृत्तान्त। निर्वृत। निर्वृति। वृन्द। वृन्दावन। वृद्ध। वृद्धि। ऋषभ। मृणाल। ऋजु। जामातृक। मातृक। मातृका। भ्रातृक। पितृक।
पृथ्वी। इत्यादि। (अनु.) ऋतु, इत्यादि शब्दांत, आदि ऋ चा उ होतो. उदा. उऊ....पुहुवी. (या
शब्दांचे मूळ संस्कृत शब्द क्रमाने असे:-) ऋतु.....पृथ्वी. (सूत्र) निवृत्त-वृन्दारके वा ।। १३२।। (वृत्ति) अनयोर्चात उद् वा भवति। निवुत्तं निअत्तं। बुंदारया वंदारया। (अनु.) निवृत्त आणि वृंदारक या दोन शब्दांत, ऋ चा उ विकल्पाने होतो. उदा.
निवुत्तं...वंदारया. (सूत्र) वृषभे वा वा ।। १३३।। (वृत्ति) वृषभे ऋतो वेन सह उद् वा। उसहो वसहो। (अनु.) वृषभ या शब्दात व सह ऋ चा उ विकल्पाने होतो. उदा. उसहो, वसहो. (सूत्र) गौणान्त्यस्य ।। १३४।। (वृत्ति) गौणशब्दस्य योऽत्य ऋत् तस्य उद् भवति। माउमण्डलं'। माउहरं।
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क्रमाने:-मातृमंडल, मातृगृह, पितृगृह, मातृष्वसा, पितृष्वसा, पितृवन, पितृपति.