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________________ प्राकृत व्याकरणे ५९ शकारषकारसकाराणां तेषामादेः स्वरस्य दीर्घो भवति। शस्य यलोपे। पश्यति पासइ। कश्यपः कासवो। आवश्यकं आवासयं। रलोपे। विश्राम्यति वीसमइ। विश्राम: वीसामो। मिश्रं मीसं। संस्पर्शः संफासो। वलोपे। अश्वः आसो। विश्वसिति वीससइ। विश्वास: वीसासो। शलोपे। दुश्शासन: दूसासणो। मनश्शिला मणासिला। षस्य यलोपे। शिष्य: सीसो। पुष्य: पूसो। मनुष्य: मणूसो। रलोपे। कर्षक: कासओ। वर्षा: वासा। वर्षः वासो। वलोपे। विष्वाण: वीसाणो। विष्वक वीसुं। षलोपे। निष्षिक्तः नीसित्तो। सस्य यलोपे। सस्यं सासं। कस्यचित् कासइ। रलोपे। उस्र: ऊसो। विस्रम्भः वीसंभो। वलोपे। विकस्वरः विकासरो। नि:स्व: नीसो। सलोपे। निस्सहः नीसहो। न दीर्घानुस्वारात् (२.९२) इति प्रतिषेधात् सर्वत्र अनादौ शेषादेशयोर्वृित्वम् (२.८९) इति द्वित्वाभावः। (अनु.) प्राकृत व्याकरणानुसार, (संयुक्त व्यंजनांतील) प्रथम किंवा द्वितीय अवयव असणारी य् र् व श् ष् आणि स् ही व्यंजने लोप पावून, उरलेले जे शकार, षकार आणि सकार, त्यांच्या आदि स्वराचा दीर्घ (स्वर) होतो. उदा. (श्य या संयुक्त व्यंजनात) य् चा लोप झाला असता, श् च्या बाबतीत:पश्यति...आवासयं. (श्र वा र्श मध्ये) र चा लोप झाला असता:विश्राम्यति...संफासो. (श्व मध्ये) व् चा लोप झाला असता:- अश्व... वीसासो. (श्शमध्ये) श् चा लोप झाला असता:-दुश्शासन...मणासिला. (ष्य मध्ये) ष् च्या बाबतीत:- य् चा लोप झाला असता:- शिष्य: ...मणूसो. (र्ष मध्ये) र चा लोप झाला असता:- कर्षक:...वासो. (ष्व मध्ये) व चा लोप झाला असता:- विष्वाण:... वीसु. (ष मध्ये) ष् चा लोप झाला असता:- निष्षिक्तः नीसित्तो. (स्य मध्ये) य् चा लोप झाला असता, स् च्या बाबतीत:- सस्य...कासइ (स्त्र मध्ये) र चा लोप झाला असता:उस्रः ...वीसंभो. (स्व मध्ये) व् चा लोप झाला असता:- विकस्वरः ...नीसो. (स्स मध्ये) स् चा लोप झाला असता:- निस्सहः नीसहो. 'न दीर्घानुस्वारात्' असा निषेध असल्याने, (वरील) सर्व ठिकाणी 'अनादौ... र्द्वित्वम्' या सूत्राने होणारे द्वित्व होत नाही.
SR No.007791
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages594
LanguageSanskrit, Marathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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