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प्रथमः पादः
(सूत्र) ङञणनो व्यञ्जने ।। २५।। (वृत्ति) ङ अ ण न इत्येतेषां स्थाने व्यञ्जने परे अनुस्वारो भवति। ङ।
पङ्क्तिः पंती। पराङ्मुखः परंमुहो। ञ। कञ्चक: कंचुओ। लाञ्छनम् लंछणं। ण। षण्मुखः छंमुहो। उत्कण्ठा उक्कंठा। न। सन्ध्या संझा।
विन्ध्यः विंझो। (अनु.) पुढे व्यंजन आले असताना, ङ् ञ् ण् आणि न् यांच्या स्थानी अनुस्वार
होतो. उदा. ङ् (चे स्थानी) :- पङ्क्तिः ...परंमुहो. ञ् (चे स्थानी) कञ्चक: ... लंछणं. ण (चे स्थानी):- षण्मुखः... उक्कंठा. न् (चे स्थानी):सन्ध्या ... विंझो.
(सूत्र) वक्रादावन्तः ।। २६।। (वृत्ति) वक्रादिषु यथादर्शनं प्रथमादेः स्वरस्य अन्त आगमरूपोऽनुस्वारो
भवति। वंकं। तंसं। अंसुं। मंसू। पुंछं। गुंछं। मुंढा। पंसू। बुंधं । कंकोडो। कुंपलं। दसणं। विंछिओ। गिठी। मंजारो। एष्वाद्यस्य। वयंसो। मणंसी मणंसिणी। मणंसिला। पडंसुआ। एषु व्दितीयस्य। अवरिं। अणिउँतयं अइमुंतयं। अनयोस्तृतीयस्य। वक्र। त्र्यम्र। अश्रु। श्मश्रु। पुच्छ। गुच्छ। मूर्धन्। पशु। बुध्न। कर्कोट। कुट्मल। दर्शन। वृश्चिक। गृष्टि। मार्जार। वयस्य। मनस्विन् मनस्विनी। मन:शिला। प्रतिश्रुत्। उपरि। अतिमुक्तक। इत्यादि। क्वचिच्छन्दःपूरणेऽपि। देवंनाग-सुवण्णं। क्वचिन्न भवति। गिठ्ठी। मज्जारो। मणसिला
मणासिला। आर्षे। मणोसिला अइमुत्तयं। (अनु.) वक्र, इत्यादि शब्दांमध्ये, जसे (वाङ्मयात) आढळेल त्याप्रमाणे, (या
शब्दातील) प्रथम, इत्यादि स्वरांच्यानंतर (श.-शेवटी) आगमरूप असा अनुस्वार (=अनुस्वारागम) होतो. उदा. वंक.... मंजारो, या शब्दांत प्रथम स्वराचे नंतर (अनुस्वारागम आला आहे). वयंसो.... पडंसुआ, या शब्दांत दुसऱ्या स्वरानंतर (अनुस्वारागम होतो). अवरिं (आणि) अणिउँतयं/
१ गृष्टि, मार्जार, मन:शिला
२ मन:शिला, अतिमुक्तक