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________________ प्राकृत व्याकरणे ३७३ पक्षे। सव्वु वि। (अनु.) अपभ्रंश भाषेत सर्व (या सर्वनाम) शब्दाला साह असा आदेश विकल्पाने होतो. उदा. साहु वि....मोक्कलडेण ।।१।।; (विकल्प-) पक्षी :- सव्वु वि। (सूत्र) किम: काइं-कवणौ वा ।। ३६७।। (वृत्ति) अपभ्रंशे किम: स्थाने काइं कवण इत्यादेशौ वा भवतः। जइ न सु आवइ दूइ घरु काइँ अहो मुहुँ तुज्झु। बयणु जु खण्डइ तउ सहिए सो पिउ होइन मज्झु ।।१।। काइँ न दूरे देक्खइ। (४.३३९.१) फोडेन्ति जे हिअडउँ अप्पणउँ ताहँ पराई कवण घृण। रक्खेजहु लोअ) अप्पणा बालहें जाया विसम थण ।।२।। सुपुरिसरे कगुहे अणुहरहिं भण कज्जें कवणेण। जिवँ जिवँ वड्डत्तणु लहहिं तिवँ तिवं नवहिँ सिरेण ।।३।। पक्षे। जइ ससणेही तो मुइअ अह जीवइ निन्नेह। बिहिँ वि पयाहिं गइअ धण किं गजहि खल मेह ।।४।। (अनु.) अपभ्रंश भाषेत, किम् (या सर्वनामा) च्या स्थानी काइं आणि कवण असे आदेश विकल्पाने होतात. उदा. जइ न...मज्झु ।।१।।; काइँ...देक्खइ; फोडेन्ति जे...थण ।।२।।; सुपुरिस... सिरेण ।।३।।; (विकल्प-) पक्षी :- जइ ससणेही...मेह ।।४।।. १ यदि न स आयाति दूति गृहं किं अधो मुखं तव। वचनं यः खण्डयति तव सखिके स प्रियो भवति न मम।। २ सू.४.३५० खाली श्लोक २ पहा. ३ सत्पुरुषाः कङ्गोः अनुहरन्ति भण कार्येण केन। यथा यथा महत्त्वं लभन्ते तथा तथा नमन्ति शिरसा।। ४ यदि सस्नेहा तन्मृता अथ जीवति नि:स्नेहा। द्वाभ्यामपि प्रकाराभ्यां गतिका (=गता) धन्या किं गर्जसि खल मेघ।।
SR No.007791
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages594
LanguageSanskrit, Marathi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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