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द्वितीयः पादः
विरला। दाहिणो दक्खिणो। तूहं तित्थं। (अनु.) दु:ख, दक्षिण आणि तीर्थ या शब्दांत संयुक्त व्यंजनाचा ह विकल्पाने होतो.
उदा. दुहं...तित्थं.
(सूत्र) कूष्माण्ड्यां ष्मो लस्तु ण्डो वा ।। ७३।। (वृत्ति) कूष्माण्ड्यां ष्मा इत्येतस्य हो भवति ण्ड इत्यस्य तु वा लो भवति।
कोहली कोहण्डी। (अनु.) कूष्माण्डी या शब्दात ष्मा या (संयुक्त व्यंजना) चा ह होतो, पण ण्ड याचा
मात्र विकल्पाने ल होतो. उदा. कोहली, कोहण्डी.
(सूत्र) पक्ष्म-श्म-ष्म-स्म-ह्मां म्हः ॥ ७४।। (वृत्ति) पक्ष्मशब्दसम्बन्धिन: संयुक्तस्य श्मष्मस्मह्मां च मकाराक्रान्तो हकार
आदेशो भवति। पक्ष्मन् पम्हाइं। पम्हल-लोअणा। श्म। कुश्मानः कुम्हाणो। कश्मीराः। कम्हारा। ष्म। ग्रीष्म: गिम्हो। ऊष्मा उम्हा। स्म। अस्मादृशः अम्हारिसो। विस्मय: विम्हओ। ह्म। ब्रह्मा बम्हा। सुह्मा: सुम्हा। बम्हणो। बम्हचेरं। क्वचित् म्भोऽपि दृश्यते । बम्भणो। बम्भचेरं। सिम्भो। क्वचिन्न भवति। रश्मिः रस्सी। स्मरः
सरो। (अनु.) पक्ष्मन् शब्दाशी संबंधित असणाऱ्या (क्ष्म या) संयुक्त व्यंजनाचा आणि
श्म, ष्म, स्म आणि ह्म यां (संयुक्त व्यंजनां) चा मकाराने युक्त हकार (म्हणजे म्ह) असा आदेश होतो. उदा. पक्ष्मन्....लोअणा; श्म (चा म्ह) :- कुम्हाणो....कम्हारा; ष्म (चा म्ह) :- ग्रीष्म....उम्हा; स्म (चा म्ह) :- अस्मादृशः....विम्हओ ; ह्म (चा म्ह) :ब्रह्मा....बम्हचेरं. क्वचित् (म्ह चे ऐवजी) म्भ सुद्धा (झालेला) आढळतो. उदा. बंभणो....सिम्भो. क्वचित् (असा म्ह) होत नाही. उदा. रश्मिः ...सरो.
१ पक्ष्मल-लोचना।
२ ब्राह्मण, ब्रह्मचर्य