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गुजराती पद्यकृति
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बीजा पिण औदार्यधैर्यादि गुणवंत छ । राजाई पिण युवराज पद दीधुं छ । तिवारे लोक तेहनें इम कहें छइ जे ए राजा हुस्यें। यद्यपि हवणां राजा नथी पिण आगलि राजा हुस्य । ए अनागतपर्यायनुं कारण कह्युं। इम अचेतन पिण अतीत अनागतपर्यायनुं कारण छइं तेहनें द्रव्य कही । अतीत जे घट-घटी- शरावप्रमुख पर्यायनुं कारण मृद् द्रव्य छइं। एहनें विषें ए पर्याय पूर्वी हूता तथा अनागत जे कपाल-मालादिक पर्याय तेहनुं पिण कारण एहि ज मृद् द्रव्य छें। एहनें विषें घट-घटी प्रमुखपर्याय होणहार छे । एतलई भावशून्य ते द्रव्यनिक्षेपो जाणवो। भाव ते वर्तमान पर्यायनइं कहइ छइं। इति द्रव्यनिक्षेपः।
हवें भावनिक्षेपो कहे छइं। वर्तमान पर्यायनें भाव कही । जे भावई करी वर्तइ छें तेहनें भावनिक्षेपो कही । तत्र दृष्टान्तः– जिम कोइ जीवद्रव्य पुण्यप्रकृतिनें उदयें सौधर्मा सभानें विषदं इंद्रपणें वर्ते छ । बत्तीस लाख विमानवासी सुर ओलगइं छइं तेहने इंद्र कही । इम अरिहंत पिण तेहनें कहीइं जे ज्ञान-दर्शन-चारित्रें करी विराजमान होइं, चोत्तीस अतिसय, पात्तीस वचनातिशय, अष्ट महाप्रातिहार्ये करी शोभायमान तेहनें अरिहंत कही । इम चक्रवर्ति-बलदेववासुदेव तेहि ज विद्यमानपणें हुई पिण नाम, स्थापना, द्रव्यनई न कहिइं, तेहथी गरज सरती नथी। जिम कोइकनुं नाम अमर छइं। पिण ते तो मरण पामें छें। तथा नाम धनपाल छई अनें पेट पोतानुं पिण भरी सकतो नथी इत्यादिक नामथी परमारथ को न पामीइं। इम थापना पिण विचारवी जिम पाषाणनी पूतलीनां स्त्रीसरिखा अंगोपांग छइं पिण तेह थी कामी पुरुषनी गरज सरती नथी । इम पत्थरनी गाय-भैंस लाकडाना घोडा - हाथी प्रमुखथी कार्यसिद्धि नथी थाती। इम द्रव्य पिण विचारी लेवो। जिम कोइक बालकनी माता मरी गई छें तेहनें आंचलें धाव्यें दूधनी प्राप्ति न हुइ। तथा कोइ पुरुष रूपपात्र राजानी स्त्री देखी व्यामोह पाम्यो ते ऊपर कोई ज्ञानी गुरु पूछ्याथी कह्यो– ए नारी आवते भवें ताहरी स्त्री होस्यें। इम सांभली खुसी थयो पिण तेहनें जाइ मिलाइ नहि। तथा कोइ पुरुषनी स्त्री मरीनइं राजानें घरे कन्या हुई छइ। एकदा समयइं ते पुरुषनी दृष्टिं पडी महामोह पाम्यो पूछयुं कोई गुरुनें जे ए ऊपर माहरो मोह तेस्यां माटइं? गुरु कहइं ज्ञानबलई ए ताहरी पूठिले भवें स्त्री हुती । ते सांभली प्रमोद पाम्यो पिण राजलोकमध्ये जाइ मिलाइ नही। तें माटइं द्रव्यथी पिण सिद्धि नही, गरज तो केवल भावथी सरें छइ ।
अत्र कोइ पूछिस्यइ—जो पहिलां तीन निक्षेपाथी सिद्धि नथी तो प्रतिमा स्यानें मानो छो? तेहनें इम कही — जे भावें वीतराग ओलखिस्यें ते वीतरागनी मूरतिनें पिण ओलखि तेहनें प्रतिमाथी परमार्थ दिशा आवई।
वली कोई पूछिस्यें—–जो भावई वीतराग ओलख्यो छें तो वली थापना मानवानुं स्युं काम छइं? एह तो मोहदशानुं कारण छ । तेहनें इम कही — जे समकिती जीवई कांइ सकल मोहकर्म जीतां नथी ते माटें समकिती जीवइं वीतरागनी मूरति भरावी छें। तेहनें देखी देखीनें वीतरागनई याद करई छ । विधिसुं द्रव्यस्तव भावस्तव करें छइं। द्रव्यपूजाथी पुण्य उपार्जई भावपूजाथी निर्जरा करइ छें। भावो हि कारणं पुंसां भणितो बंधमोक्षयोरिति
वचनात्।
ए च्यार निक्षेपा ऋजुसूत्रनय न मानें। ऋजुसूत्र वर्तमान समयग्राही छ । तथा एक वस्तुना घणा नाम छइं। यथा वनमाली, बलिध्वंसी, कंसाराति इत्यादिक कृष्णनां नाम छ । पिण पर्याय सर्वना भिन्न छ । वनमाला कंठें छई ते माटें वनमाली कहीयइ छ । बलिनें मार्यो ते माटइं बलिध्वंसी कहीइ छें । इत्यादिक पर्यायार्थ ऋजुसूत्रनय कहें। वर्तमान समयनें ज कहें अर्थभेद विचारतां वर्तमानपणुं वही जाएं। एतलई गुणनिष्पन्न नाम ऋजुसूत्रनय कह्यो।