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नयामृतम्-२
विनाश छइ ते माटइं द्रव्य किम कहीइं? ते माटें नित्य ते परमाणु ज छई। तेहनइं द्रव्य कहीइं ए द्रव्यास्तिकना त्रण भेद कह्या। ए तेरमी, चौदमी, पन्नरमी, सोलमी, सत्तरमी, अढारमी, ओगणीसमी, वीसमी गाथानो अर्थः॥ १३॥१४॥१५॥१६॥१७॥१८॥१९॥२०॥
(ढाल : २ प्रणमी श्रीगुरुना पयपंकज ए देशी) [मूल] ऋजुता सरलपणें कहें वस्तु, ते ऋजुसूत्र कहावें।
वर्तमानकालें जे वर्तइ, ते निज पर्यव भावई रे, भविका नय विचार मन धरीयई, जिम जन आणा वरीइं रे भविका० ॥२१॥ (२.१) अतीत अनागत परकीय जे वस्तु, तेहथी कार्य न सीझइं। गगन कमल परि असनादिक जे, तेहथी किम ध्रापीजइ॥ भ०॥२२॥ (२.२) द्रव्यादिक जे चार निक्षेपा, तेहमां भावने माने।
शब्दादिक द्वय नय पिण त्रिणने, सूत्र परिकरें कानइं भ०॥२३॥ (२.३) [बाला] हवइं पर्यायास्तिकना च्यार भेद कहें छई। तिहां प्रथम भेद ऋजुसूत्र ते कहें छई।
पच्चुन्नगाही उज्जसुओ नयविहि मुणेयव्वो। इच्छइ विसेसियरं पच्चुन्नं जओ सद्दो॥ ऋजु कहितां सरल कहियइं जे सरलपणे वस्तुनें कहें ते ऋजुसूत्रनय कहीयें।
अथवा ऋजुश्रुत पिण कहीइं। ए नय समस्त ज्ञानमाहिं एक श्रुतज्ञाननइं ज वांछइं। बीजां बिहुं ज्ञान थकी मुख्यवृत्तिं तेहनो प्रायइं परोपकारनो कारण नथी जणा, श्रुतज्ञान ज सर्वजीवनें हितनुं कारण छइ तिणि कारणइं ऋजुश्रुतनय पिण कहीयइं। ____ हवइं ऋजुसूत्रनो ज अर्थ विस्तारइं छइं ते किम? जिम एक वस्तुनें विषइं अनंत पर्याय कहीयइं छइ। विणठा जे पर्याय ते वर्तमाननी अपेक्षाइं वक्र छइं सांप्रत भासता नथी ते माटइं। तिम अनागत पर्याय हजी ऊपना नथी ते पिण वर्तमानकालथी वक्र छई। वक्र कहितां प्रतिकूल काहता त स
| वक्र छई। वक्र कहितां प्रतिकल कहितां ते समयने भजता नथी सरल तेहि ज जे पर्याय वर्तमान वर्तमान कालई वर्तइ छ। वर्तमान समयनइं अनुकूल छे। ते पिण पोताना पर्याय लेवा, बीजी वस्तुना नही। ते कार्यसाधक नथी पोताना पर्याय साधक छइं, स्वकीय धनवत्। जिम पोतानी गांठई धन वर्तइं छइ। तेहथी कार्यसिद्धि हुई छइं, पिण पराया धनथी कोइ गरज सरती नथी। एतलई वर्तमानकालई वर्ते छई। जे पोताना पर्याय तेहनें ज अस्ति रूपइं कहइं, पिण बीजानें न कहई। ऋजुसूत्रनो एशब्दार्थ जाणवो।
तथा वली ऋजुसूत्रनय लिंगनो भेद मानइं नही। शब्दनई विषइं लिंग त्रण प्रकारचें छई। पुल्लिंग (१), स्त्रीलिंग (२), नपुंसकलिंग (३) ए संसारमांहि जेतला शब्द छे ते त्रिणिं लिंगई करी बोलीयइ छई। ते मध्ये घट-पट-भटमुकुटादिक शब्द पुलिंगई छई, पुल्लिंग वाचक छइ। भलो घट छइ, भलो पट छइं इम अर्थनी ध्वनि ऊपजें छइं। तथा हेला-शाला-मालादिक शब्द स्त्रीलिंग वाचक छइ। भली शाला छे, भली माला छइं इम अर्थ प्रगट छई। तथा मूलफल-पत्रादिक शब्द नपुंसकलिंग वाचक छइं। भलु फल छइं इम अर्थ थापइ। ते निपुण बुद्धिना धणीनें पूछिज्यो, अथवा व्याकरण भणज्यो जिम खबर पडंइं।