________________
नयामतम-२
[मु.]
चक्षुदरसी जिम हाथीओ संपूरण देखई।
समकिती तिम नय सकलस्युं, पूरण वस्तु विशेषज्ञ॥श्रीजिन०॥१३.६॥(१६३) [टबार्थ
हवें स्यादवादीनिं सम्यग्दृष्टिपणुं दृष्टांत तें देखाडे छ। देखतो पुरुष जिम हाथीनिं सर्वावयव संयुक्त
मानें। तिम समकितदृष्टी नय समस्तिं करी सकलांसिं संपूर्ण वस्तुनिं मानें।।१३.६॥(१६३) [म.] योग वैशेषिक विचरिया, नैगम अनुसारिं।
संग्रहरंगि वेदांतिया, कापिल व्यवहारिं॥श्रीजिन०॥१३.७॥(१६४) [टबार्थ] हवें षटदर्शन कुंण कुंण नयनें अनुसारिं प्रवा ? ति कहें छई। नैयायिक अनि वैशेषिक प्रवर्त्या
नैगमनयनें मतिं, संग्रहनयें वेदांति प्रवा , सांख्य व्यवहारिं प्रवा ॥१३.७॥(१६४) बौद्ध ऋजुसूत्र मुख नय थकी, मीमांसक नय भेलइं।
पूरण वस्तु जैना वदई, षट दरसन मेलइं॥श्रीजिन०॥१३.८॥(१६५) [टबार्थ] बौद्ध ते ऋजुसूत्र प्रमुख नय थकी प्रवर्त्या, मीमांसक ते घणा नयनीं मेलें प्रवर्त्या । सर्वनय संमतपूरण
वस्तुनें जैन मानइं। छए दर्शननें मेलिं॥१३.८॥(१६५) छूटक रतन माला इति, व्यपदेश न पामइं।
एक दोरइं तेह संकुल्यां, माला संपजइं नामि॥श्रीजिन०॥१३.९॥(१६६) [टबार्थ छूटां रतननिं माला एहवं न कहेंवाई। एकें दोरइं जिवारिं परोया थकीं। माला एहवं नाम
थाइं॥१३.९॥(१६६) [मू.] तिम सवे दरसन साचला, इकेकां न कहाय।
सार स्यादवाद सूत्रिं करी, गुंथ्यां समकित थाय॥श्रीजिन०॥१३.१०॥(१६७) [टबार्थ] तिम ए दृष्टांतिं सघलां दर्शन साचां भिन्न भिन्न न कहेंवाइं। स्यादवाद रूप जे दोरो तेणिं करी गुंथ्यां
थकां सत्य थाई॥१३.१०॥(१६७) नित्य अनित्य पक्षपातीया, माहोमांहिं ते दृषइं।
जिम बेहू कुंजर जूजता, करदंतनिं मूषइं॥श्रीजिन०॥१३.११॥(१६८) [टबार्थ| एकदर्शनी नित्यपणाने मानता बीजा अनित्यपणानि मानता माहोमांहिं दूषण दीइं। जिम बे हाथी
लढता थकां सूंडित दांत प्रमुखने वजाडे॥१३.११॥(१६८) साधक स्यादवादक तिहां, लक्षइं भिन्न सरूप।
दोयनिं समोवडि लेखवई, न हारइं निज रूप॥श्रीजिन०॥१३.१२॥(१६९) [टबार्थ साधक तो स्यादवाद रूप छ। तिहां बेहूनां जूदां जूदां सरूप जाणई। बेहूनिं बरोबरि लेखवइं। पोताना
साधकपणाना रूपनि हारें नही। एकंनो पक्षपाती नही ते माटइं॥१३.१२॥(१६९)
म.]