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________________ नयामृतम्-२ [टबार्थ व्युत्पत्ति अरथनो जे अभाव ते बेहु ठामि सरखो छ। इंम सूक्ष्म दृष्टि विचार कीजीइं। घट शब्दनी व्युत्पत्ति जिम कुट शब्दिं नथी तिम घरकोणादिकिं मूक्यो छे तिवारिं पणि नथी इति भावः॥१२.९॥(१३८) [म.] इंम संसारी जीव रे, प्राण धरण माटई। सिद्ध जीव नही ए मतिं ए॥१२.१०॥(१३९) [टबार्थएह नयनें मतिं संसारी ते जीव कहीइं। प्राणधारी माटें। जीव पदनो अर्थ ते प्राणधारण रूप छई। जीव प्राणधारणइंणे) इति वचनात्। ए नयइं मतिं सिद्धनिं जीव न कहिइं, प्राणधारी नथी माटइं। एवं जीवाजीवो संसारी पाणधारणाणुभवो। सिद्धो पुण अजीवो जीवपरिणामरहिओ त्ति॥ ॥१२.१०॥(१३९) [मु.] ए महाभाष्यिं भाष रे, ए अनुसारथी। कहुं श्वेतांबर क्रिया ए॥१२.११॥(१४०) [टबार्थ] श्वेतांबरनी प्रक्रिया आगली गाथाथी कहें छई॥१२.११॥(१४०) [म.] जीव नोजीव अजीव रे, तह नोअजीव। कीधइं इंम आकारणइं ए॥१२.१२॥(१४१) [टबार्थ] जीव१ नोजीव२ अजीव३ नोअजीव४ इंम च्यारे आमंत्रणे बोलावें थकें॥१२.१२॥(१४१) जीव प्रतिं पण भाव रे, ग्राही नैगम पमुह। जीव पण गति वंछइं ए॥१२.१३॥(१४२) [टबार्थ जीवनें विषं औपशमिक१ क्षायिक२ क्षायोपशमिक३ औदयिक४ पारिणामिक ए पांच भावनिं ग्रहतां जे नैगम प्रमुख नय ते जीवनिं पांचं गतिने विर्षे वांछई। च्यार गतिं अनिं पांचमुं मोक्ष एहनें विषं पाचें भाव छ। तिहां च्यारें गतिं क्षायोपशमिक इंद्रिय१ औदयिकी गति२ पारिणामिक जीवत्व३ श्रेणिकादिकनिं क्षायिकभाविं सम्यक्त्व४ श्रेण्यारूढने औपशमिक५ ए पांचे भाव छई। सिद्धनें पणि क्षायिक१ औदयिक२ पारिणामिक३ ए त्रिण्य भाव होइं इति भावः॥१२.१३॥ (१४२) [म.] नोजीव इति आहवानई रे, अजीव कई जीवना। देश प्रदेश प्रति वदई ए॥१२.१४॥(१४३) [टबार्थनोजीव इंम आमंत्रणिं वांछइ। केंतो नोशब्द निषेधनो वाचक ए पक्षे अजीव कहें, अथवा नोशब्द एक देशवाची ए पक्षे जीवना देश प्रदेशनिं कहें।।१२.१४॥(१४३) आकारित अजीविं रे, पुद्गल द्रव्यादी। तह नोअजीव आकारितिं ए॥१२.१५॥(१४४)
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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