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गुजराती पद्यकृति
[टबार्थ| तिहां दृष्टांत कहें छ। प्रकाशनी क्रियाइं रहित तेहनि जिम दीपक न कहीइं। अनि दीपक शब्द पणि
प्रकास शून्यनो वाचक नहीं। प्रदीप शब्द प्रकाशवंत ज अर्थ कहीइं। अन्यथा संशयादिक दोष होइं। ते किम? दीपन क्रियारहित पणि दीप जो होइं तो दीप शब्द उच्चरे — इंणिं प्रकाशवान अर्थरूप दीप कहो. किं वा अप्रकाशक जे अंधोपलादिक कह्यो? इंम संसय ऊपजें। तथा ____इंणे अंधोपलादिरूप ज कह्यो पणिं दीप न कह्यो इंम विपर्यय पणि उपजें। तथा दीप कहें अंधोपलादिकनो बोध थाइं अनि अंधोपलादि कहें दीपनो बोध थाइं। इंम संकर दोष पणि उपजें। ते माटें प्रकाशवंत तेह ज दीप शब्द कहीइं। अनि दीप लक्षण जे अ- - - -[र्थ तेहनो?] ज वाचक दीप शब्द इति भावः॥१२.३॥(१३२) शबद वसिं अभिधेय रे, अभिधेय वशि शबद।
इंम उभयथी विशेषीइं ए॥१२.४॥(१३३) [टबार्थ शब्दनि वसि अर्थ अनि अर्थनें वशिं शब्द इम इकेकनि विशेष करीइं। जिम दीप सबद प्रकाशक
वस्तुनो वाचक अनि प्रकाशक वस्तु ते दीप शब्दनो अर्थ इति भावः॥१२.४॥(१३३) [मु.] स्त्री मस्तकि आरूढ रे, जल आहरणादि।
किरिया युतनि घट कहइं ए॥१२.५॥(१३४) [टबार्थ| वली बीजुं उदाहरण कहें छई। स्त्रीना मस्तकनें विषं धर्यो जलआहरणादिक जे चेष्टा तेणिं सहित
तेहनिं घट कहीइं॥१२.५॥(१३४) [मु.] गृहकोणादिकई थाप्यो रे, तेह घडो नहीं।
चेष्टा विण ए नय मतिं ए॥१२.६॥(१३५) [टबार्थ] पणि घरना खूणा प्रमुखने वि स्थाप्यो तेहनिं घट न कहीइं। घटनी चेष्टा तिहां छे नहीं ते माटें।
एवंभूतनयनें मति॥१२.६॥(१३५) समभिरूढ नई भाषइं रे, घट पद व्युतपत्ति। अछते जो कुट पद तणो ए॥१२.७॥(१३६) मानइं अरथ तुं भिन्न रे, तो चेष्टा विण।
कालिं घट पणि किम घडो ए॥१२.८॥(१३७) [टबार्थ हवें पूर्व नयनिं दर्षे छे। समभिरूढ नयनिं कहें छइं — घटपदनी व्युत्पत्ति जे चेष्टायोग रूप ते नथी ते
माटई कुट शब्दनो॥अरथ तुं जूदो मानें छइं। ते चेष्टारहित कालिं घट शब्द घट किम बोलावई
छइं?॥१२.२, १२.८॥(१३६, १३७) [म.] व्युतपत्ति अरथ अभाव रे, छे ठामि तुल्य।
सूक्ष्म दृष्टि इंम कीजीइं ए॥१२.९॥(१३८)