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________________ नयामृतम्-२ ग्रहेनारो जे अध्यवसाय ते शब्दनय कहेंवो। एह नय अंगीकार करइं। कार्यापन्न रूप जे पर्याय तेहनि पूर्वथी विशेषता आगलि कहवास्ये। भाव विना बीजा त्रिण निक्षेपानि न मानें इति भावः॥१०.१॥(१०५) [मु.] नामादिक घट त्रयनिं न मानइं, तत कारय अणकरवइं रे। पट परि इति प्रत्यक्ष विरोधइं, तह लिंगनइं अणधरवइं रे॥ श्री.१०.२॥(१०६) [टबार्थ] तिहां युक्ति कहे छइं। नामादिक त्रिण निक्षेपाना घटनें ए न मानइं। तिहां हेतु कहें छे। ते भावघटनुं जे कार्य जल आहरणादिक तेहना अणकरनार माटइं। तिहां दृष्टांत कहें छे। पटनी परिं। ईहां अनुमान सूचव्यु। जिम पट जल आहरणादिक घटकार्यनइं न करइं तिम नामादिक घट पणि ते कार्यनें करें नहीं। ए रीतिं प्रत्यक्ष विरोध छई। वली बीजुं कारण कहें छई। लिंग ते घटनु पृथुबुध्नोदराद्याकाररूप तेहनि नामादिक घट नथी धरता ते माटें पणि तेहनें न मानइं॥१०.२॥(१०६) [मु.] कहें ऋजुसूत्रनि अतीत अनागत, जो घटनुं नवि मानई रे। तुल्य प्रयोजनाभावि हुंतइं, नामादि किम वानइं रे॥श्री.१०.३॥(१०७) [टबार्थ] हवें ऋजुसूत्रने दूर्षे छे। ऋजुसूत्रनिं कहें छे – अतीत अनागत जो घटनिं तुं नथी मानतो। जल आहरणादिक कार्य नथी करतो ते माटें। कार्यनो अभाव तो ईहां पणि सरखो छई। तो नामादिक घटनें किम मानें?॥१०.३॥ (१०७) [मु.] बहु परयायई अरथ एक वंछड़, पणि लिंग-वयणनई भेदइ रे। भिन्न अरथ मानइं इति ऋजुथी, शबद विशेषित वेदई रे॥श्री.१०.४॥(१०८) [टबार्थ हवें ऋजुसूत्र थकी एहनी विशेषता कहैं छे। इंद्रपुरिंद्रा(पुरंदरा)दिक जे अनेक पर्याय तेहनो अर्थ एक ज मानइं। पणि ऋजुसूत्रथी एतलो विशेष लिंग-वचननें भेदि। तटः, तटी, तटम् इति लिंगभेद; जलम्, आप इति वचनभेद। एणी रीति अर्थ जूदो मानें। एतलो ऋजुसूत्र थकी शब्दनय विशेष मानें। ऋजुसूत्र लिंग-वचन भेदिं अर्थ अभिन्न मानें, ए ते भेद मानें इति भावः॥१०.४॥(१०८) सप्तभंग भाख्या जिनशासनि, तेह माहिलें कोई भंगई रे। सुविशेषित घट संमत एहनइं, अविशेषित ऋजु अंगि रे॥श्री.१०.५॥(१०९) [टबार्थ वली ऋजुसूत्र थकी एहनो विशेष देखा. छई। सप्तभंगी श्री जिनशासनिं कही छ। ते माहें १लें(पहेलें) अमें २इं(बीजई) भांगई विशेष्यो जे घट ते एहनिं मान्य। अने ते भांगानी विवेक्ष्या विना ऋजुसूत्र मानई। एह पणि ऋजुसूत्र थकी शब्दनय विशेष जाणवो॥१०.५॥(१०९) [म.] सप्तभंगी ईहां कही; विवरी, प्रथमिं छतो घट देख्यो रे। उरध ग्रीवादिक निज परयाई, सदभाविं सविशेष्यो रे॥श्री.१०.६॥(११०) [टबार्थ ईहां अधिकार आव्या माटें सप्तभंगी विवरीनिं कहीइं छई। प्रथम भांगो कहें छे। स्यादस्ति घटः।१
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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