SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नयामृतम्-२ माटें आवें छइं प्राणी, कहेंवाई कुंडीनिं। जाइं छे हीडनार, कहेंवाइं वाटनिं इति भावः। ए व्यवहार नय मत तत्त्वार्थभाष्यमाहिं का छे। तथाहि— लौकिकसम उपचारप्रायो विस्तृतार्थो व्यवहारः। इति। एह नय पणि निक्षेपा च्यारे मानइं। तिहां प्रत्येकिं बहुत्व माने ते जाणवू।।८.१०॥(९६) ॥इति व्यवहारनयस्तृतीयः॥ ॥अथ ऋजुसूत्रः॥ (ढाल-९, राग-सारिंग, पूरव भव हवइं सांभलो जातिस्मरण योगिं रे ए देशी) निज अनुकूल अरथ जिके, वरतमान कालीन रे। तदग्राही अभिप्रायको ते, ऋजुसूत्र अदीन रे॥९.१॥(९७) सवि नय सविनय धारीइं, वारीइं स्वाभिनिवेश रे॥ आंचली।। [टबार्थ] हवें ऋजुसूत्रनुं स्वरूप कहें छई पोताना कार्यनो साधक एहवो जे अर्थ, तेह पणि वर्तमान कालनो तेहनो ग्राहक जे अध्यवसाय ते ऋजुसूत्र कहीइं। निवारीइं पोताना कदाग्रहनि।।९.१॥(९७) ए नय मांनइं नही कदा, अतीत अनागत वस्त रे। उपलंभाभाविं करी, गगनकसम परिं अस्त रे॥सवि०॥९.२॥(९८) [टबार्थ] ए ऋजुसूत्रनय कि वारिइ मानें नहीं अतीत वस्तुनिं अनि अनागत वस्तुनि। तिहां हेतु कहें छई। प्राप्तिनइं अभाविं करी। आकाशकुसुमनी परिं नास्तिरूप जाणवू। इहां पंचावयव अनुमान वाक्य जाणवु।।९.२॥(९८) [मु.] परकीय वस्तुनिं पणि नहीं, मानइं प्रयोजनाभावइं रे। परधन परि कुंण कामर्नु?, निजथी निफल पावइं रे॥सवि०॥९.३॥(९९) [टबार्थ तथा पारकी वस्तुनिं पणि न मानें। कामिं नावई माटें। तिहां दृष्टांत कहें छई। पारका धननी परिं। पारकुं वस्तु स्यां कांमनु? पोतानी ज वस्तुइं पोतें फल पामइं। ईहां पणि अनुमान जाणवू।।९.३॥(९९) व्यवहार वादीनई वदइं, जो व्यवहाराभावई रे। संग्रह संमत पणि तज्यु, सामान्यह निज भावइं रे॥सवि०॥९.४॥(१००) [टबार्थ हवें ईहां स्वयुक्तिं व्यवहारनयनी दूषे छई। व्यवहार वादीनिं कहें छई। जो विवहार विना संग्रहि मांन्युइं पणि तिं छांड्युं सत्ता सामान्य पोताने मति।।९.४॥(१००) अतीत अनागत पारकुं, तो किम मानइ वस्त रे। व्यवहाराभाव तुल्यता, निष्फलता पणि जुस्त रे॥सवि०॥९.५॥(१०१) [टबार्थअतीत अनागत पारकी परकीय वस्तुनिं तो किम मानई छे? अतीतादिक वस्तु किम मानें छइं
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy