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________________ नयामृतम्-२ [टबार्थ हवें फलित कहें छे। पूर्वोक्त भेद माटइं नामादिक च्यारइं निक्षेपा व्यक्तिं बहू छई। तेहनिं आपआपणी जे नामादिक जाति तेणिं करी एकत्व रूपिं ग्रहीए ते संग्रहनय कहीए॥७.९॥(८६) ॥इति संग्रहनयः॥ ॥अथ व्यवहारनयः॥ (ढाल-८, राग-रामगिरी, छानो निं छपी रे कंताए देशी) [मु.] जे अनुयायी लोक व्यवहारनिं रे, अध्यवसाय विशेष। ते व्यवहार कह्यो नय सूत्रमा रे, मानइं एह विशेष॥८.१॥(८७) [टबार्थ हवई व्यवहारनयनुं स्वरूप कहें छे। जे अनुसरइं लोक व्यवहारनिं एहवो जे अध्यवसाय विशेष ते व्यवहारनय कहीइं सूत्रमाहिं। एह नय विशेष पदार्थनि मानइं। लौकिक व्यवहार विशेषनि उद्देशी प्रवर्तइं ते माटें एह नय विशेषनो माननार इति भावः॥८.१॥(८७) [मु.] श्री जिनवाणी प्राणी आदरो रे, हरखी परखी रे चित्ति। नय अंतर निरपेखी देखी, ऊवेखीइं सवि मिथ्यामत नित्ति॥८८॥आंचली।। [टबार्थ] अन्य नयनो निषेधक एहवो दुर्नय जाणी निषेधीइं।।८.२॥(८८) [मु.] घटपट प्रमुख विशेषथी अन्यनो रे, नहीं लोकिं व्यवहार। वार्ता मात्र प्रसिद्ध सामान्य छइं रे, खकुसुम परिं ते असार॥श्री०॥८.३॥(८९) [टबार्थ हवें एहनुं मत कहें छई। घटपटादिक जे विशेष वस्तु तेह थकी बीजा कोई सामान्यनो लोकनें विर्षे व्यवहार नथी। ते माटें कहेवा मात्रे प्रसिद्ध छे सामान्य पदार्थ। आकाशकुसुमनी परिं ते अछतो छ। घट-पटप्रमुख विशेषनो व्यवहार तो दीसें छे पणि सत्ता सामान्य किस्यानो विवहार थातो नथी तो ते किम मानीइं? इति भावः॥८.३॥(८९) जल आहरणादिक उपयोगीया रे, घटपट आदि विशेष। अरथक्रिया अनिमित्त सामान्यनि रे, मान्यानो स्यो किलेस?॥ श्री०॥८.४॥(९०) [टबार्थ] वली युक्ति देखाडे छइं। जल आणवा प्रमुख क्रियाना करनार घटादिक विशेष ज दीसें छ। ते माटें अरथ अनि क्रियानुं कारण नहीं एहवं ते सामान्य ते मानवानो स्यो जंजाल करवो? ॥॥८.४॥(९०) [म.] जे संग्रहइं दृष्टांति वनस्पति दाखीउ रे, ते पणि मुज अनुकूल। कुण वृक्षादि विशेषथी अन्य छइं रे, वनस्पती, रे मूल?॥ श्री०॥८.५॥(९१) [टबार्थ हवें पूर्वि संग्रहवादीइं सामान्य मानवानो दृष्टांत देखाड्यो ते दूधे छे। जे संग्रहनयिं दृष्टांत वनस्पतिनो कह्यो ते पणि माहरें ज मिलतो ज छ। वृक्ष-आम्र-लिंबादिक जे विशेष वस्तु ते थकी बीजो वनस्पतीसामान्य कुंण छइं? आम्रप्रमुख सर्व वृक्षादिकनें व्यक्तिं जूदां बोलावीइं तिवारिं वनस्पतीइं वाच्य कोई [विशेष दीसता नथी इति भावः॥८.५।।(९१)
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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