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________________ १० पर्यायं भावमेवास्ति तथाभिदधन् पर्यायास्तिकः, द्रव्यास्तिकश्च पर्यायास्तिकश्च तौ तथा । तयोर्द्वयोर्मध्ये अन्तर्भवन्ति = अवतरन्ति । आदौ = द्रव्यास्तिके आदिचतुष्टयं = नैगमादि चत्वारो भवन्ति। अन्ते भवोऽन्त्यस्तस्मिन्नन्त्ये = पर्यायास्तिके अन्त्यास्त्रयः = शब्दाद्याः भवन्तीत्यर्थः॥२१॥ नयामृतम् - २ [टबार्थ] [शब्दार्थ] हवे साते नयोनो उपसंहार करे छे । एक एक उत्तरना विशुद्धो नयो होवे नयो साते पण आ तेम ज एकेको होय सो भेदो तेथी सातसो नयो आ छे॥१९॥ हवे एवंभूत तथा समभिरूढ ए बे नयोनो शब्दनयमां एम ज जो अंतर्भाव थाय तारे पांच थाय नयो तेना पांचसो भेदो जे ते ॥ २० ॥ द्रव्यास्तिक तथा पर्यायास्तिक ए बेमां अंतर्भूत ए साते पण पेला द्रव्यास्तिमां प्रथमना चार तेम ज छेल्या पर्यायास्तिमां छेला त्रणे ते अंतर्भूत छे तेथी॥२१॥ भावार्थ:- हवे नैगमादि साते नयो एकथी एक उत्तरो करि विशुद्धो होये छे। तथा एकेकना सो सो भेदो थाय छे तेथी सातेना सातसो भेदो थाय छे। तथा वली एवंभूत तथा समभिरूढ ए बे नयोनो शब्दनयमां समावेश थाय छे तेथी तारे पांच नयो थाये छे तारे तेओना पांचसो भेदो थाय छे। तेम ज वली द्रव्यास्तिक तथा पर्यायास्तिक ए बे नयोमां साते नयोनो समावेश थाय छे। तेमां पेहला द्रव्यास्तिकमां नैगम (१) संग्रह (२) व्यवहार (३) ऋजुसूत्र (४) ए चार तथा शब्द (१) समभिरूढ (२) एवंभूत (३) ए त्रण पर्यायास्तिकमां समाये छे एटले चार द्रव्यास्तिक अने त्रण पर्यायास्तिक छे॥१९॥२०॥२१॥ [मूल] सर्वे नया अपि विरोधभृतो मिथस्ते सम्भूय साधुसमयं भगवन्! भजन्ते। भूपा इव प्रतिभटा भुवि सार्वभौमपादाम्बुजं प्रधनयुक्तिपराजिता द्राक्॥२२॥ [टीका] हे! भगवन्! = हे! वर्धमानस्वामिन्! मिथः परस्परं विरोधभृतोऽपि = विरोधो विरुद्धाभिप्रायस्तं बिभ्रति धारयन्ति ये ते तथाविधाः, सर्वे = समस्ता अपि नयाः सम्भूय = एकीभूय साधु = समीचीनं सुन्दरं ते = तव समयं = सिद्धान्तं भजन्ते = सेवन्ते । के इव? भुवि प्रधनयुक्तिपराजिता, भुव पृथ्व्यां प्रधनाय = युद्धाय युक्तिः = प्रबलपुण्यबलेनापूर्वसैन्यरचना तया पराजिताः = पराजयं प्राप्ताः प्रतिभटाः, विपक्षे जेतारो भूपाः द्राक् =शीघ्रं सर्वाः = परिपूर्णषट्खण्डभूमिः भोग्या यस्य स सार्वभौमः = चक्रवर्ती तस्य पादाम्बुजं चरणकमलम् इवेत्यर्थः॥२२॥ = भावार्थ:- हे = [टबार्थ] [शब्दार्थ] इहां सुधी श्लोक छंद हवे बे वसंततिलक छंदो करि भगवत्स्तुति छे। सर्वे एवा नयो जे ते पण विरोधना भरेला एवा परस्पर अन्योन्य ते नयो एकरूपे मतीने सारा एवा सिद्धांत प्रतें हे भगवन्! हे स्वामिन्! सेवे छे भजे छे राजाओ जेवा शत्रुओ जे ते पृथविमां चक्रवर्तिना चरणकमल युद्धरूप करि युक्तियो पराजय करेला तुरत एवा ॥ २२ ॥ भगवन्! सर्वे नयो परस्पर विरोध भरेला एवा पण सूधा थैने तमारा सिद्धांतने सेवे छे। जेम पृथविमां शत्रु राजाओ मांहोमांहि विरोधिऔ छता पण युद्धे करी पराजय करेला एवा चक्रवर्तिना चरणकमलने सेवे छे तेम युक्तिये करी पराजय करेला नयो ते आपना स्याद्वाद सिद्धांत ते भजेछे ए भावार्थ॥२३॥
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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