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________________ नयामृतम्-२ [मूल] अर्थं शब्दनयोऽनेकैः पर्यायैरेकमेव च। मन्यते कुम्भकलशघटायेकार्थवाचकाः॥१४॥ [टीका] शब्दनामा नयः शब्दः = पुंस्त्रीनपुंसकाद्यभिधायकोल्लापस्तत्प्रधानो नयः शब्दनयः। स अनेकैः शब्दपर्यायैरुक्तोऽपि अर्थं = वाच्यं पदार्थमेकमेव मन्यते। कुतः? हि = यस्मात् कुम्भः कलशो घट: एते शब्दाः सर्वदर्शिभिर्जिनैरेकस्य घटाख्यपदार्थस्य वाचकाः कथितास्ततः सिद्धमनेकैः पर्यायैरुक्तोऽप्यभिधेय एकम् एवेत्यर्थः॥१४॥ [टबार्थ[शब्दार्थ| अर्थ प्रते शब्द जे नय ते अनेकोए पर्यायो एव एवो ज वलि माने छ। कुंभ, कलश, घट जे ते घट तथा प्रमुख एक ज पदार्थने कहेनारा छे॥१४॥ भावार्थ:- हवे शब्द नय पांचमो। जे ते अनेक पर्यायो एकार्थ प्रति ज माने छ। उदाहरण— जेम कुंभ, कलश, घट ते सर्वे शब्दो एक घटरूप पदार्थने ज देखाडे छ। अर्थात् जेम घट, कलश, कुंभ एवा पर्याय जुदा जुदा छे पण वस्तुताये घडो ज छे तेम पट, चीवर, चैल, वस्त्र एवा पर्याय जुदा छ तथापि वस्तुताये वस्त्र ज छे एम माने छे।।१४॥ मिल] ब्रूते समभिरूढोऽर्थं भिन्नं पर्यायभेदतः। भिन्नार्थाः कुम्भकलशघटाघटपटादिवत्॥१५॥ [टीका] समभिरूढः सम् = अतिशयेन व्याकरणव्युत्पत्त्याद्यारूढमेवार्थमभिमन्वानः समभिरूढो नयः पर्यायभेदतः = पर्यायशब्देन भेदः पर्यायभेदस्तस्माद् भिन्नं = पृथगभूतमेवार्थं = वाच्यं ब्रूते = मन्यते कुतः? वर्धमानस्वामिना कुम्भकलशघटशब्दाः भिन्नार्थाः पृथगर्थवाचकाः कथिताः। यथा कुम्भनात्कुम्भः, कलनात्कलशः, घटनाद् घटः, ततः सिद्धं शब्दभेदे वस्तुभेदो घटपटादिवत्॥१५॥ [टबार्थ] [शब्दार्थ बोले छे कहे छे समभिरूढ नय जे ते अर्थ प्रते भिन्न जुदो पर्यायना भेदथी भिन्न अर्थवाला एवा कुंभ तथा कलश तथा घट, तथा घट तथा पट प्रमुख जेवा॥१५॥ भावार्थ:- हवे समभिरूढ नय छट्ठो। ते अर्थ प्रते पर्यायोना भेदथी जुदो केहे छ। जे कुंभ, कलश, घट जे ते घट पट जेवा जुदो छे जेम कुंभा ते हाथीना कुंभस्थल जेवो छे, घट ते मेघनी घटा जेवो छे, कलश शिखर प्रासादनुं ते प्रासादना शिखर जेवो छ। अथवा मृत्तिका प्रमुखना अनेक पर्यायोना भेदथी अर्थने भिन्न केहे छ। ए समभिरूढ नय ए भावार्थ ॥१५॥ [मल] यदिः पर्यायभेदेऽपि न भेदो वस्तुनो भवेत्। भिन्नपर्याययोर्न स्यात् स कुम्भपटयोरपि॥१६॥ [टीका] यदि शब्दपर्यायभेदेऽपि वस्तुनः =पदार्थस्य भेदो न भवेत्= न जातस्तर्हि भिन्नः पर्यायः शब्दो ययौ स्तौ भिन्नपर्यायौ तयोः कुम्भपटयोरपि स भेदो न स्यादित्यर्थः॥१६॥ [टबार्थ] [शब्दार्थ] जो पर्यायना भेदे सते पण न भेद जे ते वस्तुनो थाय जुदा एवा ते पर्यायोनो न थाय सहित कुंभ पटनो पण॥१६॥ भावार्थ:- पण जो वस्तुनो भेद न थाय तो ज अनेक पर्यायोए एक अर्थ प्रते ते घडो, इहां वस्तुनो भेद थयो छे माटे एक अर्थ नही। एम अनेक पर्याये करी एक अर्थनो शब्दनय माने छे ए शब्दनय ए भावार्थ ॥१६॥
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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