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________________ गुजराती गद्यकृति नेरयिए णं भंते! नेरइएसु उ/व/वज्जे अनेरइए नेरईयेसु उ/व/वज्जे? गोयमा! नेरईए नेरईएसु उ/व/वज्जे। (भगवती श.४ उद्दे.९) इम ऋजुसूत्र नय आलावौ छै। अक्षररूप नामनें मुख्य कहै सो शब्दनय। जिम प्राणानुं धरै ते जीव, नही तौ वचन अगोचर छै। व्याकरण मध्ये शब्द नीपजै तेहनौ अर्थ हुवै ते कहै। जिम रागद्वेष जीपिं जिन। हिवे शब्द रे भेदें पिण अर्थरो भेद न माने ते समभिरूढनय कहीजइ। जिम इंद्र, शक्र, पुरंदर, देवराज सर्वनै इंद्र कहीजै सब्दमें(नय) जुदा जुदा अर्थ बोलै छै पिण रूढेइं इही ज कहीजै। शब्दमध्ये जेहवौ अर्थ छइ तेही ज बोलै ते एवंभूतनय जाणवौ। जिम परम ऐश्वर ज पणाथी इंद्र कहीजै, शक्र नाम सिंहासनमांहै बैसै तारे शक्र कहीजै। ए नय ७मौ सर्वथी सुद्ध छै । केवलज्ञानादि गुण प्रगट हुयै सिद्ध कहै। गुणपर्याये सहित संपूर्ण अवस्था प्राप्त वस्तुने वस्तु कहै। यथा सिद्धि स्थानक प्राप्त जीवने सिद्ध कहै। हिवें जीव द्रव्यसुं सात ७ नय जोडै छ। नैगम करि तीन काल जयवंत सासतौ जीव छै। संग्रहनय करि अनंतगुणपर्याय सहित जीव छै। व्यवहार नय करि जीव सकर्मी छइ। ऋजुसूत्र नय करि कर्म बंधनै उपयोगे वर्ततौ सकर्मी छ। तेहि ज कर्मना क्षयना उपयोगमें वर्ततौ अकरमी शबद नय करि जीव इसौ नाम कहणी आवै। समभिरूढ नय करि जीव गुणपर्यायनै ओलखै। एवंभूतनय करि वस्तुनी सन्नाय है शुद्ध केवलज्ञानदर्शल(न) प्राण धरै ते जीव कहीजै। इम छ द्रव्यनै ७ नय लगावणां उपयोगसुं।। १. =जिते
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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