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नयामतम-२
अज्ञातकर्तृकः ॥सप्तनयअधिकारः॥
॥श्री जिनाय नमः॥ हिवै एक-अनेकपक्षथी निश्चै ज्ञान कहिवाने नय कहै। सर्वद्रव्यमें अनेक स्वभाव छै। ते एक वचनथी कह्या जाय नहीं तिणे मांहोमांहे संखेपपणें कहै छ। तिहां मल नयना बि भेद छै। एक द्रव्यार्थिक (१) बीजो पर्यायार्थिक(२) तिहां द्रव्यार्थिकनो अर्थ कहै छै उत्पादव्यय पर्याय गौणपणे द्रव्यनी गुणसत्तानै ग्रहै ते द्रव्यार्थिक कहीजै। ते द्रव्यार्थिक नयना दस भेद छै।
नित्य द्रव्यार्थिक सर्वद्रव्य नित्य छै(१)।
अगुरुलघु अने क्षेत्रनी अपेक्षा न करै, मूलगुणने पिंडापणे ग्रहै ते एक द्रव्यार्थिक (२)। जे ज्ञानादिक गुणे सर्वजीव एक सरिखा छै तिणे सर्व जीव एक कहै।
स्वद्रव्यादिकने ग्रहै ते सत् द्रव्यार्थिक जिम सत् लक्षणं द्रव्यम्(३)। अनै कहिवा जोगा गुण अंगीकार करै ते वक्तव्य द्रव्यार्थिक(४)। अशुद्ध द्रव्यार्थिक अज्ञान आत्मानो छै(५)। अन्वय द्रव्यार्थिक सर्व द्रव्य, गुण, पर्याय सहित छै(६)। परमद्रव्यार्थिक सर्वद्रव्यमूल सत्ता एक छै(७)। शुद्ध द्रव्यार्थिक जीव सर्वना आठ प्रदेश निर्मला छै(८)। सत्ता द्रव्यार्थिक जीवना असंख्यात प्रदेश एक समान छै(९)। परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक गुणगुणी द्रव्य ते एक छ। आत्मा ज्ञान रूप छै(१०)। ए द्रव्यार्थिकना दस भेद कह्या। पर्यायार्थिक नय कहै छै— पर्यायाने ग्रहै ते पर्यायार्थिक। तेहना छ भेद छ। द्रव्यपर्याय—भव्यपणो, सिद्धपणो(१)। द्रव्यव्यंजनपर्याय आपना प्रदेश माने(२)।
गुणपर्याय—जे एकथी गुण अनेकता थाई। जिम धर्मादि द्रव्य आपणै चालनादि गुणथी अनेक जीव पुद्गलने सहाय करै(३)।
गुणव्यंजनपर्याय—जे एक गुणना घणा भेद छ (४)। स्वभावपर्याय—अगुरुलघु(५)। ए पांच पर्याय सर्वद्रव्यमें है।