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नयामतम-२
(३.४) अज्ञातकर्तृक
॥सप्तनयविचारपत्र॥ हिवै श्रीवीतरागना वचन बि प्रकारना छइ। एक द्रव्यार्थिक नय(१) बीजौ पर्यायार्थिक(२)। जिम मेरु सासती वसत द्रव्यार्थकनयें सासती छइ, पर्यायें असासती छई।
हिवै सात नय कहें छइ। नैगमनय(१) संग्रहनय(२) व्यवहारनय(३) ऋजुसूत्रनय(४) शब्दनय(५) समभिरूढनय(६) एवंभूतनय(७)।
हिवें अर्थ लिखै छै। नैगम कहतां महासामान्य अंसग्राही छै, अंस4 पिण संपूर्ण वस्तु कहइ। जिम सूक्ष्म निगोदीया जीवमें अक्षररै अनंतमै भागे ज्ञान थकां सिद्ध समान कहै। वली १३ १४में गुणठाणै वर्ततां कमरा एक अंस थकां संसारी कइं इत्यादि(१)
संग्रह नय सत्ताग्राही छै। सर्व जीव एक समान छै, सत्तागुण घटै नही। यथा जीवरा २ भेद सिद्ध(१) अनै संसारी(२)
हिवै व्यवहार नय कहै छै जीव अनै पुदगलरा भेद विहचै ते व्यवहार नय कहीजै। जिम जीवना भेद २-सिद्ध(१) अनै संसारी(२), संसारीना २ भेद-अजोगी(१) सजोगी(२), सयोगीना बि भेद-केवली(१) छद्मस्थ(२), छद्मस्थना २ भेद-क्षीणमोह(१) उपशांतमोह(२)। ए बिहे १०रा ९।८ गुणठाणे, ए श्रेणि प्रतिपन्नना २ भेद-अप्रमत्त(१) प्रमत्त(२), प्रमत्तना २ भेद सर्वविरति(१) देशविरति(२), देशविरतिना२ भेद विरति(१) अविरति(२), अविरतिना २ भेद-समकिती(१), मिथ्यात्वी(२), मिथ्यात्वीना २ भेद-भव्य(१) अभव्य(२), भव्यना २ भेद-शुकलपक्षी (१) किसनपक्षी(२), शुकलपक्षीना २ भेद-परित्त संसारी(१) अपरित्त संसारी(२)। इण भांति भेद करै ते व्यवहार नय। अथवा जीवरा भेद १/२/३/४/५/६/७/८/९/१०/११/१२/१३/१४/ आथ] ५६३। अथ अनंता। ए सर्व व्यवहारें कर्मनइ उदै नाम व्यवहारें दीधा नि(वि?)हचै।
जीवनै १ भेद छै, वली पुदगलना २ भेद-परमाणु(१) खंध(२), खंधना २ भेद-सूषम खंध(१) बादरखंध(२) तेहना २ भेद-सचित्त(१) अचित्त(२), तेहना २ भेद-जीवगृहीत(१) जीवअग्री(गृही)त(२)। इण भांति अनेक भेद विहचै ते व्यवहार नय त्रीजारौ वचन जाणवौ।
पुदगलरा ४ भेद करै ते व्यवहारे परमाणुमांहे मिलनबिछडन सकति छइ तिण वास्ते पुद्गलास्तिकाय कहीजै।
हिवै वर्तमानकाल वर्तता भाव ग्रहै ते ऋजुसूत्रनया जिम साधुरा परिणाम में वरतता गृहीनै पिण साधु कहीजै, गृहीपरिणामे वरतता साधुनै पिण गृही कहीजै। वली मनुष्यतिर्यंचनें पिण नरकना आयुखानौ बंध थयां पछी नारकी कहीजै, इम देवतिरजंच विचारणा। यथा श्रीविवाहपन्नतीसूत्रे
१. =सूक्ष्म), २. =विभजन, विघटना, ३. =तिर्यंच