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________________ नयामृतम्-२ दीउंमांहें समुद्र न माई तिम एकांत नयनें विषै तूं पिण न माई। जिहां एकांतवाद छै तिहां जिनमत नही। तथा बौद्ध (१) क्षणिकवादी छै। नैयायिक (२) कर्तावादी छै। सांख्य (३) प्रकृतिप्रत्ययवादी छै। मीमांसक (४) कर्मवादी छ। चार्वाक (५) नास्तिक ए पांच मत जाणिवा। विस्तरस्तु श्रीहरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चये। ए सात नय प्रस्थक (१) वसति (२) प्रदेश (३) ए तीन दृष्टांतें करी कहै छै। तत्र प्रस्थक ते धान्य भरवानो मापो कहीयै। सिंधूदेशे ढोइयो कहै छ, अथवा पायली अपर नाम। कोइ सूत्रधार प्रस्थक घडवाने काजै कुवार हाथै लेई वन भणी चाल्यो छै। तेहवै एक पुरुष सन्मुख मिल्यो। तेणें पूछ्यो— तुं किहां जाईस? तेणै असुद्ध नैगमवादी हुइते उत्तर कह्यो— जे हुं प्रस्थक छेदवा जाउं छु। एहनै विषै घणा गंमा भासै छ। प्रस्थक तो घणै कालें नीपजस्यै। तिवार पहिली केतलाई व्यवसाय करस्यै पिण कारणनै विषै कार्यनं उपचार छै। कारण ते काष्ट कार्य ते प्रस्थकः। कारणथी कार्य उपजावणहार छै ते माटै उपचारै करी कहिउं जे प्रस्थक छेदवा जाउं छु। तथा सूत्रधार वनमांहि जाई काष्ट छैदवा लागो तिवारें वली कोई पुरुषै पूछे —एं तुं स्युं छेदै छै? तिवारै कह्यों— हुं प्रस्थक छेदूं छु। कारणनै विषै कार्यनो उपचार छै ते माटे छेदै छै काष्ट अनें कहै छै प्रस्थक छैद् छु ए नैगमथी कांइ एक शुद्ध छ। कांइ एक प्रस्थकनै ए क्रिया ढंकडी ते माटें तथा ते सूत्रधार वांसोलासुं काष्ट घडै छै तिवारै कोइकैं पूछ्यो—तुं स्युं घडई छै? तिवारै कहिउं जे— प्रस्थक घडु छु। ए बीजाथी सुद्ध छै। तथा ते सूत्रधार बीजणै करी काष्ट उकेरतो हुँतो तिवारै कोई एकै पूछ्यों तुं सुं कोरै छै? तिवारै तेणै कह्यो —हुं प्रस्थक उऊरु छु। ए त्रीजाथी सुद्ध छै। तथावली सरहाणे चढ्यो देखीनै पूछ्यो ते—तुं सुं समारै छै? तिवारै कह्यो जे प्रस्थक समारं छु। ए चोथाथी शुद्ध छै। इम जावत्प्रस्थक न नीपजै तावत् जे जे वचन कहै ते सर्व नैगमनय कहिये। इम विवहार पिण जाणवो। विवहार पिण नैगम समान छै ते माटें भिन्न अवतारस्युं नही। हिवै संग्रहनुं दृष्टांत कहै छै। समृण्हाति क्रोडीकरोति सामान्यरूपतया सर्वं वस्तु स संग्रहः। विप्रो(?) धान्येन व्याप्तः प्रस्थो यथा। जिवारे ते संपूर्ण कंठ पर्यंत धाने करी भरी हुई तिवारे ज तेहने प्रस्थक कहै। संग्रह सामान्य धर्मनो ग्राहक छै। अत्र सामान्य धर्म एहि ज जाणिवो धान्यनुं जे मान तेहनी मेयता कहतां प्रमाणता तेहनै भजै तिवारै प्रस्थक कहीयै। पहिला बे नय नैगम अमें व्यवहार ते कारणीकभूत काष्टनै पिण प्रस्थक कहता हता ते माटें अशुद्ध कह्या संग्रहनय तेहथी शुद्ध जाणिवं। प्रस्थक नीपना पछी पोतानो कार्य जे धान्य मानता रूप ते भजइं तिवारे ज प्रस्थक कहै। हिवै ऋजुसूत्रनय कहै छ। धान मापवानो जे हेतुभूत ते मापलो तेहने प्रस्थक कहै तथा तेणै माप्यो जे धान्यनो ढिगलो तेहनें पिण प्रस्थक कहै। ऋजुसूत्रनय वर्तमान समय ग्राही छै। संग्रह थकी ए शुद्ध छै, ते त्रिणि कालग्राही छै ते माटें अशुद्ध जाणिवो। हिवै शब्दादिक तीन नयनो एकठो ज दृष्टांत कहै छै। ए तीन शब्दनय छै। शब्द प्रधान मानै छै पिण अर्थ प्रधान मानता नथी। जिहां शब्दनी व्यवस्था छै तेहने ज अर्थ कहै। ते शब्द व्यवस्था तो प्रस्थक ज्ञानना उपयोगवंत पुरुषनें विषै रही छै ते माटें ते पुरुषनै प्रस्थकहं कहीयै जेहवा जेहवा उपयोगनै विषै जे जे प्राणी वर्ते छै तिवारै ते ते १. कुहाडी २. नजीक
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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