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________________ गुजराती गद्यकृति परस्परभिन्नार्थानामेकत्रावस्थानं सङ्करः। इम अनेक दोष लागे। स्याद्वाद वक्ताने पूछि लीज्यो। इति समभिरूढनयः॥(६) हिवै एवंभूतनय कहै छै। जे शब्द जेहवी क्रियानें कहै छै ते क्रियानै भजतो हुइ तिवारे ज तेहनै ते नामें करी बोलावीयै तेहनें एवंभूतनय कहीयै। ते किम? जिम एक घट शब्द छै तेहनो अर्थ चेष्टादिक्रिया लक्षण छै। चेष्टा ते क्रिया कहीयै, घट चेष्टायामिति वचनात्। कोइ एक नवयुवती जल भरवा गई छै। निर्मल जलसुं कुंभ भर्यो छै, सुंदर ईंढोवणी नीचें धरी छै, सर्व दिशिनै विषै जलसुं कुंभ भर्यो आईकयो छै। ते घट मस्तकें धरीनै निर्भय साहंकार थकी लीलाई बाह डोलावती पणघटै चाली आवै छै। चालता नरनै मंगलीक सूचवती थकी इत्यादिक क्रिया सहित हुइ तिवारै घट कहीयै, पिण एहवी क्रियारहित वाली घटनै घट न कहीयै। इम शक्र पुरंदरादिक शब्द पिण जाणिवा। जे जे शब्दनो जेहवो जेहवो अर्थ छै ते ते अर्थनें भजै तिवारै जे तेहनै तेणै नामें करी कहै। शक्र तेहने ज कहीयै जे शक्तिनै फोरवतो हुवै, पुरनामा दैत्य मारै ते पुरंदर इम अर्थ, न भजै तिवारै शक्रादिक न कहीयै ए समभिरूढ थकी एवंभूतनय शुद्ध छै। इति एवंभूतनयः॥(७) ___ ए सात नया ते मध्ये पहिला चार नयनै विषै अर्थ प्रधान छै ते माटें अर्थनय कहीयै। आगला तीन नय शब्द प्रधान ते मा★ शब्दनय कहीयै। तथा पहिला तीन द्रव्यास्तिकनय कहीय, द्रव्यने ज अर्थ कहै परमारथ थकी पिण पर्यायनै न कहै ते माटै द्रव्यास्तिकनय कहिये। आद्यास्त्रयो द्रव्यास्तिका इति वचनात्। तथा छेहला चार नय पर्यायास्तिक जाणिवा। वस्तुपरमार्थ पर्याय छै पिण द्रव्य नथी इम कहै ते पर्यायस्तिकनय कहीयै। शेषाश्चत्वारः पर्यायास्तिका इति वचनात्। ___ तथा द्रव्यास्तिक पिण बे प्रकारर्नु छै। एक अशुद्ध द्रव्यास्तिक, बीजो शुद्ध द्रव्यास्तिक कह्या। तेहर्नु परमार्थ कहै छै। अनन्त परमाणुं पुंजनें, अनन्त व्यणुकखंधनें, इम संख्यात, असंख्यात, अनन्त प्रदेसीया खंधनें एकगुण कालादि, द्विगुण कालादि, अनन्तगुण कालादि संयुक्तनें तथा त्रिकाल विषयनें प्रत्येकै प्रत्येकै द्रव्य कहै अनेकता प्रतिपादक छै ते माटें अशद्ध कहीयै। तथा संग्रहनय ते शद्ध द्रव्यास्तिक जाणिवो। ते केवल परमाणनेइं ज द्रव्य कहै। ते पिण एकगुण कालादिक संयुक्त हुयै तेहनें ज द्रव्य कहीयै। पिण द्विगुण कालादिकनो विनाश छै ते माटें द्रव्य किंम कहीयै? बि माटै नित्य ते परमाणुं ज छै। तेहनें द्रव्य कहीयै। तथा ए सात नय अवधारण सहित हुई तो दुर्नय जाणिवा। अवधारण ते जे एक कोई नय हाथी लीधुं छै तेहने ज माने बीजा नय सर्वथा उथापी नाखै तिवारै ते दुर्नय वादी कहीयै। अवधारण रहित हुई तिवारै सुनय कहीयै। एक कोइ नयनें कहै तिवारै बीजा नयनै विषै उदास भाव राखै पिण जडमूलथी उथापै नही तिवारे सुनय कहीयै। एक्केक्को य सयविहो सत्तनय सया हवंति।(प्रवचनसारोद्धार-९४८) ए सात नय संयुक्त वीतराग मत स्याद्वाद कहीयै। उक्तं च— उदधाविव सर्वसिन्धवः समुदीर्णास्त्वयि नाथ दृष्टयः। न च तासु भवान् प्रदृश्यते प्रविभक्तासु सरित्स्विवोदधिः॥ (द्वात्रिंशिका ४.१५) समुद्रने विषै जिम सकल नदी समाइ तिम वीतराग! ताहरै विषै सर्व नयनी दृष्टी समावें छै। तथा जिम ते न
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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