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________________ नयामृतम्-२ वीतरागनी मूरति भरावी छ। तेहनें देखी देखीने वीतरागनै याद करै छै। विधिसुं द्रव्यस्तव, भावस्तव करै छै। द्रव्यपूजाथी पुन्य उपार्जे, भावपूजाथी निर्जरा करै छै। भावो हि कारणं पुंसां भणितो बंधमोक्षयोरिति वचनात्। इति भावनिक्षेपो(४)। ए च्यार निक्षेपा ऋजुसूत्रनय मानै। वर्तमान समयग्राही ए नय छ। तथा एक वस्तुना घणा नाम छ। यथा-वनमाली, बलिध्वंसी, कंसाराति इत्यादिक कृष्णना नाम छ पिण पर्याय सर्वना भिन्न छै। वनमाला कंठे छै ते मा वनमाली कहीयै, बलीने मार्यो ते मा बलीध्वंसी कहीयै इत्यादिक पर्याय अर्थ ऋजुसूत्रनय न कहैं वर्तमान समयनै ज कहै। अर्थभेद विचारतां वर्तमानपणुं वही जायै एतलै गुणनिःपन्न नाम ऋजुसूत्रनय कह्यो। इति ऋजुसूत्रनयः॥ _ हिवै शब्द नय कहै छ। भाषावर्गणा रूप पुद्गलनुं परिणाम ते शब्द कहीयै। तेणे करी पदार्थ, वाच्यवाचकभाव संयुक्त कीजै छै। अर्थ, अप्रधान मानें, शब्दनें प्रधान मांनै एह धर्म माटै शब्दनै विषै शब्दनयनु उपचार कीजै। उपचार तै आरोप कहीयै। जिम कोई एक नरनै विषै क्रूर गुण देखीनै सिंहनो उपचार कीजै छे जे पुरुषसिंह छै तिम अत्र पिण शब्दनै विषै अर्थनी अप्रधानता अनें शब्दनी प्रधानता देखीनै शब्दनै विषै शब्दनय कहियै। ए शब्दनय पिण वर्तमान पर्यायनें कहें, अतीत अनागतनै न कहई। तथा ऋजुसूत्र थकी ए नय सुद्ध छै। ते देखाडै छै। ऋजुसूत्र लिंगवचन ते भेद न कहै, ए नय लिंगादि भेद कहै छै। जिम तटशब्द पुल्लिंगै, तटी स्त्रीलिंगै, तटं नपुंसक। ए अर्थ तो एक ज बोलै छै पिण उच्चार करतां लिंगभेद साक्षात् भासै छै। इम वचन पिण भेद छै। एको नरः, द्वौ नरौ, बहवो नराः, तथा देवः, देवता, देवतम् ए त्रिण शब्दे प्रवृत्ति भिन्न कहीइं छै। अनै ऋजुसूत्र तो एक प्रवृत्ति कहै ते माटे ए नय शुद्ध जाणिवो। इति शब्दनयः॥(५) ___ हिवै समभिरूढ नय कहै छै। जेतला एक नामना पर्याय शब्द छै ते सर्व भिन्न भिन्न अभिधेय कहै छै। ए समभिरूढ नय कहीयै। ते किम? जिम इंद्रना पर्याय नाम घणा छै शक्र, पुरंदर, शचीपति इत्यादिक नाममाला मध्ये ए सर्व इंद्रना नाम छ पिण पर्याय जूदा जूदा छै। ते कहै छै— यथा शक्नोतीति शक्रः; शक्तिवंतनें शक्र कहीये, पुरं दारयतीति पुरन्दरः, इन्दति परमेश्वर्यं प्राप्नोतीति इन्द्रः। इम सर्व नामनी व्युत्पत्ति भिन्न छै। व्याकरण भण्यै खबर पडै। शब्दज्ञानवांछकै जैनेंद्र प्रमुख व्याकरण भणिवो। श्रीअनुयोगद्वारसूत्र बत्तीस दोष वर्णव्या छै। तिहां ए परमार्थ चाल्यो छै। उक्तं चचरणकरणप्पहाणा, ससमयपरसमयमुक्कवावारा। चरणकरणस्स सारं, णिच्छयसुद्धं ण याणंति॥ (उपदेशमाला २६९-१०३) जे शब्दशास्त्र, न्यायशास्त्र भण्यां विना सिद्धांत वाचै छै ते जीव ज्ञानावरणी कर्म बांधै छै। वांकुं विषमुं अर्थ कहै छै ते मा। तथा तेहना श्रोता दर्शनावरणीय कर्म उपार्जे छै, झर्छ सरदहै छै ते माटें। तथा निपुणबुद्धीइं ए नय चित्तमांहि धरवो। जेतलाएक शब्द छै ते सर्व भिन्न भिन्न पर्यायनै कहे छै। तथा ते सर्वने विषै एकार्थ वाचकता मानीइ तो अतिप्रसंग तथा संकर दोष लागै। अतिप्रसंगनुं अर्थ कहै छै—विजातीयेषु शब्देषु एकार्थप्रसञ्जनमतिप्रसङ्गः। विजातीय शब्दने विषै एक ज अर्थ मानीयै तौ सर्व शब्दमात्रनो एक ज अर्थ हुइ जाय।
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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