________________
गुजरात कृति
९७
उपयोगवंत कहीइं छै, पिण तदनुपयोगी काष्टभाजननै प्रस्थक न कहै । चेतन धर्म उपयोग छे। ते किम ? जिम रागोपयोगनै विषै प्राणी वर्ते छै तेहनै रागी कहीयै, विरागोपयोगीनें विरागी कहीयै तिम अत्र पिण प्रस्थकनुं उपयोगवंतनै प्रस्थक कहीयै तथा प्रस्थक शब्दे प्रस्थक निश्चयात्मक ज्ञान कहीये। ज्ञाननो उपयोग छें ते तो चेतन्य धर्म छै। ते किम जडात्मक काष्ट भाजननै विषै हुई?
तथा प्रस्थको निश्चयात्मकं मानमुच्यते निश्चयश्च ज्ञानं तत्कथं जडात्मनि कष्टभाजने वृत्तिमनुभविष्यति? चेतनाचेतनयोः सामानाधिकरण्याभावात्तस्मात्प्रस्थकोपयुक्त एव प्रस्थक इति श्रीहेमचंद्राचार्याः। ते माटें ए तीन नय करी प्रस्थक उपयोगी पुरुषनै ज प्रस्थक कहै। जिन धर्मवंत(?) काष्टनै विषै हुवै। इति प्रस्थकदृष्टांतः॥ (१)
हिवै वसतिदृष्टांतै सात नय अवतारै छै। कोइ पाडलीपुरनगर निवासी जननें कोई एक विदेशी नरें पूछयो—जे तुं किहां वसै छै? तिवारे तिणै कह्यो– हुं लोकमध्ये वसुं छु। ए अशुद्ध नैगम। लोक तो चौदै राज प्रमाण छै, न जाणीइं केही जागाइं वसतो हुसै। वली क्षणांतरै पूछयों तिवारें कह्यो–जे हुं तिर्यंग्लोकमांहि वसुं छु। ए पहिलाथी कांइएक शुद्ध छै। पहिलामांहि त्रिलोक भासता हता, ए माहें तो एक लोक भासै छै। पछीवली क्षणांतरें पूछयों तिवारें इम कह्यो—जे हुं जंबूदीपै वसुं छु। ए बीजाथी शुद्ध छै। बीजामांहि असंख्याता द्वीप-समुद्र भासता हुंता, एमांहि तो एक ज द्वीप भासै छै। पछैवली क्षणांतरें पूछयुं तिवारै कह्यो–जे हुं. भरतक्षेत्रें वसुं हुं । ए त्रीजाथी शुद्ध छै। त्रीजामांहि तो सप्त क्षेत्र भासता हुंता, एमांहिं तो एक ज क्षेत्र भासै छै। पछैवली क्षणांतरै पूछ्युं तिवारें कह्यो – हुं मगधदेशैं वसुं छं। ए चौथाथी शुद्ध छै। चौथामांहि तो बत्तीस हजार देश भासता हुंता, एमांहि तो एक ज मगध देश भासै छै। पछैवली क्षणांतरें पूछ्यों तिवारै को जे – हुं पाडलीपुर नामा नगरें वसुं छु। ए पांचमाथी शुद्ध छै। पांचमां मांहि तो अनेक ग्राम-नगर भासता हुंता, ए मांहि तो एक ज नगर भासै छै । वली पूछयों तिवारै कह्यो जे—हुं देवदत्त साह पाडे वसुं छु। छठाथी ए सुद्ध छै। छट्ठा मांहि तो घणा पाडा भासता हुंता, ए मांहि तो एक ज पाडो भासै छै। पछैवली कह्यो जे–हुं घरनो चित्रित बारणो छै, नकसी काम छै, ऊंचो झरोखो छै, ऊपरि बंगलो छै, पूर्व सन्मुख द्वार छै तेणै घरें वसुं छं। ए सातमाथी शुद्ध नैगम। एमांहि पिण घणा गमा छै। ऊपदिली भूमिका, विचाली भूमिका, भूहिरा प्रमुख घणा ठाम छै, न जाणीइं किहां छै सतो (बेसतो?) हुसै ते माटें। इति नैगम।
हिवै व्यवहार कहै छै। व्यवहारना दष्टांत नैगमनी परें जाणिवो, कांई फेर नथी ते माटे त्रीजा ठाम थी बीजै ठामे भण्यो छै। अत्र कोइ एक शिष्य पूछिस्यै जे – छेहलो नैगमनो भेद लोकिकनयें नही घटें। ते किंम? जो गामांतरे न गयो हुयै तो कहियै, जे घरै वसै छै एहवो चरमनैगम छै अनै व्यवहारनयै तो गामांतरे गयौ छै तो पिण इम कहिवाइ छै जे देवदत्त पाटलीपुरनगरें ज वसै छै तो ए नय नैगम समान किम कहीयै ? तेहनैं इम कहीयै— अहो भव्यजन ! व्यवहारनयै पिण एहवो ज कांई नियम नथी । जे ग्रामांतरे गयो छै तो पिण वसतो ज कहियै । लोक इम पिण किवाक बौलैं चैं—देवदत्त एतला दिन पाटलीपुरनगरें वसतो पिण हिवणां ग्रामांतरै गयो छै। एहवो वचन तो नैगम पि कहीयै छै ते माटें नैगम समान जाणिवं। इति व्यवहार ।
हिवै संग्रह कहै छै। ते पुरुष जिवारै आसनादिकनै विषै बैठो हुइ तिवारै वसतो कहीयै जिवारै चलनक्रिया भजै छै तिवारै वसतौ न कही । इम सर्वत्र बैठानेंई ज वसतो कहियै । इति संग्रह।