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नयामृतम् - २
इम कहियै— अरे भाइ! तें कह्यु ते खरं पिण घणै ठामे नाम यावत्कालतांई रहितो दीसै छै अनें कोई नाम फिरतो दीसै छै ते माटे ए विचार अत्र न लेवो। आचार्यनी विवक्षा नथी अत्र जे नाम यावत्कालीन हुइ तेहि ज लेवें।
तथां थापना पिण यावत्कालनी हुयै अने अल्पकालनी पिण हुयै । ऋषभ, चंद्रानन, वारिखेण इ नामे जिणनी थापना नित्य भवन, विमान, पर्वतादिकनै विषै कही छै । तेहनी आदि नथी, अंत पण नथी।
अत्र कोइ एक पूछिस्यै—स्थाप्यते इति स्थापना । जे थापी दुइ तेहनैं थापना कहियै एहवुं थापना शब्दनुं अर्थ प्रगटै छै। व्याकरणशास्त्रे अनें एतो कोई पुरुष अथवा देवतांइं थापी नथी जेहनी आदि न लाभैं ते थापी पिण किम कहाइं? तेहनें इम कहीइं—अरे भाइ ! थापना शब्दनुं अर्थ बीजुं पिण छै। अर्हदादि रूपेण सर्वदा तिष्ठती(ति) स्थापना। अर्हदादिकनें रूपें करी सर्वदा रहै छै ते थापना कहिई ए अर्थ थापना शब्दनो नित्यनें विषै करिवुं, अनित्यनें विषै पूर्वे कह्यो ते अर्थ लेवो ।
अत्र कोइ एक पूछिसै—ए तो पुद्गलद्रव्य विस्रसा परिणामै करी तेहवै आकारें परिणम्या छें अने पुद्गलपरिणाम ते असंख्याता काल उपरांत रहै नही । तो ए वस्तुनी आदि अंत नथी कहता ते स्या माटै? तेहनें इम कहीइं—स्याद्वादमतेंनें अनुसारै असंख्याता काल पछी ते पुद्गल अपर परिणाम भजै छै । वली तेहनें ठामै बीजा पुद्गल तेणै वर्णै, तेणें गंधै, तेर्णै रसै, तेणें फरसै, तेणें संठाण तेतला नवा आवीनें संक्रमै ते माटै तदाकारणै सास्वता हैं पिण तेहि ज पुद्गल कांई अनादि अनन्तकालतांई रहिता नथी। अनं त पुद्गलनुं चयोपचय हुइ रह्यो छै। तथा चोक्तं जीवाभिगमसूत्र—
तत्थ अणेगे जीवा य पुग्गला य चयंति उवचयंति। इति नित्यस्थापना। (जीवाजीवाभिगम प्रतिपत्ति- इ सू ८७)
हिवै अनित्यस्थापना कहै छै। जिम कोईक बालकै लाकडानुं घोडो थापी ते उपरि चढीनें केतलाइक काल तां रामति कीधी। पछैवली तेहि ज लाकडानों हाथी थापीनें रामति कीधी। पोतानी जिम जिम इच्छा थाती गई तिम तिम थोडा कालमांहि घणी भांतिनी थापना फेरवी । इम कोइएक बालिकायै वस्त्रनी ढला करी गहें, वस्त्रै शृंगारीनें दीकरी थापी। क्षणांतरै बहु, बहिन, पोत्री, सखाप्रमुखनी कल्पना मोहदशाईं करी फेरवी ए अनित्य थापना २।
हिवै द्रव्यनिक्षेपो कहै छै। अतीत अनागत पर्याय तेहनुं कारण तेहनें द्रव्य कही । अथ दष्टांत-जिम कोई एक राजानो प्रधांन छै। प्रधान मुद्रा सुंपी है। पछैवली केतलैक कालै मनोभंग थयो ए जाइं। तेहनी प्रधानवटी उतारी राजमुद्रा पाछी लीधी। ति वारै पछी पिण सहुको लोक तेहनें प्रधान कहै छै। ए अतीतपर्यायनुं कारण कहिउं।
हिवै अनागत पर्यायनुं कारण कहै छै। जिम कोइ राजानुं पुत्र अत्यंत रूपसुंदर छै। मोटी निलाडवटी छै, विशाल नेत्र छै इत्यादिक छत्तीस लक्षणै विराजमान छै । जन्मपत्रिका मध्यै राजयोग्य मालाग्रह इम बीजा पिण उदार्य, धैर्यादि गुणवंत छै। राजाइं पिण युवराज पद दीधो छै तिवारै लोक तेहनें इम कहै छै जे ए राजा हुस्यै। यद्यपि हिवणा राजा नथी पिण आगलि राजा हुस्यै । ए अनागत पर्यायनुं कारण कहिउं ।
इम अचेतनद्रव्य पिण अतीत अनागत पर्यायनुं कारण छै तेहनें द्रव्य कहीयै । अतीत जे घट-घटी- शरावप्रमुख पर्यायनुं कारण मृत् द्रव्य छै । एहनें विषै ए पर्याय पूर्वे हुंता । तथा अनागत जे कपालमालादिक पर्याय तेहनुं पिण