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________________ गुजराती कृति ९१ तिमवली वचनभेद पिण मानें नही । वचन पिण व्याकरणें तीन कह्या छै। एकवचन (१) द्विवचन (२) बहुवचन(३)। एकोऽस्ति, द्वौ स्तः, बहवः सन्ति ए वचनभेद यद्यपि वस्तुनें विषै भासै छै पिण वर्तमान समय एक ज छैं ते माटे ऋजुसूत्रनय वचनभेद न मानें। तथा नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव ए च्यार निक्षेपा मांने । नाम ते इंद्रनै इंद्र कहै, थापना इंद्रने इंद्र कहै, द्रव्य इंद्रनै इंद्र कहै, भावैंद्रनै पिण इंद्र कहै। वर्तमानकालै जे निक्षेपो वर्ततो हुइ तेहनें तिम कहै । ऋजुसूत्र वर्तमानसमयग्राही छै पिण योग्यायोग्य शब्दार्थग्राही नथी । अत्र प्रसंगथी च्यार निक्षेपानुं अर्थ लिखीयै छें। चतुर्णा निक्षेपाणां मध्ये आद्याः त्रयो द्रव्यास्तिकनये भावनिक्षेपस्तु पर्यायास्तिकनये इति तत्त्वार्थे। पहिलो नाम निक्षेपो(१) बीजो थापना निक्षेपो । स्थापना द्विधा - सद्भूतस्थापना (१) असद्भूतस्थापना(२) सद्भूता यथा रूपं प्रतिबिंबम्, असद्भूता - अक्षादिषु गुरुस्थापना (२) । त्रीजो द्रव्यनिक्षेपो ( ३) चौथो भावनिक्षेपो ( ४ ) । निक्षेप कहतां रचना कहियै, निधि कहियै । ते मध्ये प्रथम निक्षेपानुं अर्थ लिखीयै छै । जे अन्य अर्थनै विषै रह्यो हुइ अर्थशून्य हुइ, बीजा पर्यायने कहै नही, पोतानी इच्छाई करी को हुई एहवुं जे वस्तुनो नाम तेहनें नाम निक्षेप कहीयैं। तत्र दृष्टांतः—जिम कोइक गोपालदारकनुं इंद्र एहवुं नाम छें पिण ते नाम सौधर्मा सभानें विषें वर्तै छें बत्तीस लाख विमानना अधिपतीनें घटें पिण ते दरिद्र ग्वालणीना बालकनै न घटैं ते माटें अर्थशून्य छै। तथा बीजा जे इंद्रना पर्यायनाम मरुत्वान्, मघवा इत्यादिक ते कांई गोपालदारकनै न घटै । ए नाम सर्वगुणनिःपन्न भावेंद्रनें ज घटै पिण निर्गुण नामनें विषै न घटै। गर्भगहेली माताइं मोहांधकार व्याकुल चित्त थकी आपणी खुसीइं नाम दीधों छें पिण परमार्थ कोई नथी एतलौ भावसून्य ते नाम निक्षेप कह्यो। इति नाम निक्षेपो(१)॥ हिवैं थापनानिक्षेपनुं अर्थ लिखीयै छै । भावै रहित हुई पिण भावपणानुं अभिप्राय कल्पनें हुइ तेह थापना कहीयै। तत्र दृष्टांत : - जिम कोइ एक मोही प्राणीइं पाषणनी मूरति घडावी, मस्तकि मुगट पहिरावी, कांनें कुंडल घाली, कोटिं हार घाली, हाथें वज्र आपी, वस्त्र विभूषित करी इंद्र करी थापी ते उपरि तन, धन, मन समर्पण करे छें जे माहरें इंद्र एहि ज, एहनी सेवा, भगति, गुणग्रांम कीधां सकल वांछितनी प्राप्ति हुसै इम जाणी सेवा करें छें पिण ते मूरति पाषाणनी छै। तेणें कांइ शुभाशुभ कर्तव्य जाणवुं नथी । जे जाणणहार छै ते तो भावेंद्र छें। सौधर्मा सभाने विषै विराजै छै। ते भणी परमार्थ जोतां थापना पिण मोहनी कल्पना छै । तथा अत्र कोइ पूछिस्यै नाम थापना माहें भेद किस्यो छै? अर्थसून्य तो बेहुं छै ते माटै अभेद कहो। तेहने इम कहियें—नाम थापनामाहें अर्थ थकी भेद नथी, पिण कालथी भेद छै। नाम ते यावत्काल तांइ नामधारक वस्तु रहै तावत्काल तांई तेणें नामें बोलावी । जें एतलें नामनो क्षण क्षणै परावर्तन था । यथा मेरु, जंबूद्वीप, मगधादिक नाम छै ते जां जां [अ]र्धद्वीपदेशादिक छै तां तांइ इणै ज नाम कहीसै । इम देवदत्त यज्ञदत्तादिक नाम छै जां तांइ ते पर्याय जीवै धर्यो छै तां ताई तेणै ठामें बोलावीइ छै पिण ते जीवतां थका विचिमांहि नाम लोपातुं नथी। अत्र कोई एक पूछिस्यै— जे कोई एक नाम पिण विचिमांहि लोपातुं दीस्यै छै। जिम कोइ एकनुं नाम बालक अवस्थानें विषै धनपाल छै पछै केतलेक दिवसे लोके पिंडपाल नाम दीधु ते माटें नाम पिण लोपातुं दीसै छै। तेहनें
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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