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________________ नयामृतम्-२ प्रथम नैगमनो अर्थ लिखीयें छै। सामान्यरूपें तथा विशेषरूपें करी सहित वस्तुने माने पिण एकाकी सामान्यरूपें अथवा विशेषरूपे ज वस्तुनें न कहें ते नैगम कही। तत्र सकलभुवनत्रयमध्यवर्ती वस्तुकदंबकनें ग्रहें ते सामान्य धर्म कहीयें। सामान्य धर्म ते एक छै यथा शैवनये नित्यमेकमनेकानुवर्ति सामान्यम् नित्य छे एक छे अनेकनें वि रहिउं छे ते सामान्य कहीयें। द्रव्यत्व, घटत्व, पटत्व, मनुष्यत्वादि लक्षण जाणवू। तथा जैनन्याये जैनना न्यायमांहि पणि इंम कह्यो छै अप्रच्युतानुत्पन्नस्थिरैकरूपं हि सामान्यम्, तच्च द्रव्यमेव न तु पर्यायास्तेषां तद्विलक्षणत्वात्। जे उपजें नही विणसें नही स्थिर एकरूप त्रिणि कालने विषै सामान्य ते जाणिवू। ते तो द्रव्य ज जाणिवं, पिण पर्याय न जाणिवा। तेहगें तो उत्पादविनास छै तेणे करी अस्थिर छै अनेकरूपता भजे छइं। यथा शैवन्याये व्यावृत्तिधर्माणो हि विशेषाः। जेणे करी वस्तुनी व्यावृत्ति कीजें ते विशेष कहीयें। जैन न्यायमांहि पणि विशेषतुं एहवू लक्षण का छे पूर्वपूर्वाकारपरित्यागोत्तरोत्तराकारपरिस्फूर्तिमन्तो हि विशेषाः पर्यायापरनामानः। पूर्वपूर्वाकारने त्यजें हैं उत्तरोत्तराकारने भनें 3 तेहने विशेष कहीइं तेहनो अपरनाम पर्याय छ। व्यवहार साधक विशेष ज छै। ते घट-पटलकुट-मुकुटादिक नर-नारकादिक जाणवउं। ए सामान्य-विशेषतुं अर्थ कहिउं। ए बे प्रकार वस्तुनें कहें पिण एक प्रकार न कहै ते नैगम कहीयै। एतले गुणनिष्पन्न नाम थयु। ___ अत्र कोइ एक पूछिस्यै जैन पिण वस्तुने विषै बि धर्म माने छे एक सामान्य बीजो विशेष। सामान्य विना विशेष नथी, विशेष विना सामान्य नथी, निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत् शशविषाणवत् (मीमांसा श्लोकवार्तिकसू.५.१०.)ते माटें जैन पिण केवल नैगममतावलंबक हुस्यै। तिहनें इम कहियें जैन कथंचित्प्रकारें भिन्न भिन्न पणि कहै छै कथंचित्प्रकारें अभिन्न पणि कहै छै पिण सर्वथा प्रकारें नथी केतो। सामान्य-विशेषनी सप्तभंगी छ। वस्तु स्यात् सामान्यम्(१) स्याद्विशेषः(२) स्यात्सामान्यविशेषौ(३) स्याद् वक्तव्यम्(४) स्यादवक्तव्यं क्रमतः सामान्यकल्पनया(५) स्यादवक्तव्यं क्रमतो विशेषकल्पनया(६) स्यादवक्तव्यं युगपत्सामान्यविशेषकल्पनया(७) इति। वस्तुने विषै कथंचित्प्रकारे सामान्यधर्म छ। सामान्य ते द्रव्यपणुं छे। इति प्रथमो भंगः(१) १. धर्म मो.मुं. २. आ वाक्य को. प्रतमा नथी ३. आ वाक्य को. प्रतमां नथी
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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