SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजराती गद्यकृति तथा तेहिज वस्तुने विषै कथंचित्प्रकारे विशेष धर्म छै। विशेष पर्याय कहीयै। द्वितीयो भंगः(२) तथा तेहिज वस्तुनें विषै समकाले उभय धर्म पिण छ। सामान्य-विशेषौ। तृतीयो भंगः(३) तथा वस्तुनें विषै अवक्तव्य धर्म पिण छे केवल एक कोईई करी कहिवा योग्य पिण नथी। चतुर्थो भंगः(४) तथा अनुक्रमे एकाकी सामान्यकल्पनाई ज करीने वस्तु कहिवाने अवक्तव्य छै। इति पंचमो भंगः(५) तथा ए अनुक्रमे एकाकी विशेष कल्पनाई ज करीने वस्तु कहिवाने अवक्तव्य छै। इति षष्ठमो भंगः(६) तथा तेह ज वस्तु युगपत्कहतां समकालें सामान्य-विशेषे कहिवाने अवक्तव्य छ। इति सप्तमो भंगः (७) तेह माटें जैनस्याद्वादी 3 अमें स्याद्वादने विषं तो साते नयनो समावेश छे तेह माटें २बें केवल नेंगमनयावलंबी न कहीइं नैगममतावलंबी ते नैयायिक वैशेषिक प्रमुख जाणिवा ॥इति नैगमः॥ हिवै संग्रहनो अर्थ लिखीयै छ। सकलभुवनत्रयमध्यवर्ति त्रिकालकलित वस्तुनें कहै ते संग्रह कहियें। तत्र दृष्टांतः—जिम सकल नवनवरंग विचित्रित घट हैं। व्यक्तिभेद करी भिन्न भिन्न दीसै 3 पिण सामान्य धर्म घटत्व, द्रव्यत्व एक ज छै तेणे करी सर्वने घट कहियै। तथा गौरी, काली, नीली प्रमुख नव नव व्यक्ति गायनी ॐ पिण गोत्व धर्मपणुं सास्नादिक असाधारण धर्मपणुं सर्वने विषै सामान्य छै ते माटें सर्वनें सामान्यपणे गाय कहीयै छै। तथा अतीतानागतवर्तमान कालने विर्षे जे मनुष्य हुया, हुई है, हुस्यै तेहनें विषै वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संस्थान, संघयण,अवगाहना, नाम, क्षेत्र प्रमुख विचारता घणूं परस्परइं भेद छै पिण मनुष्यपणुं सर्वनें विषै सामान्य छे, सर्वनें मनुष्य कहियै। तथा भांति भांतिना घट, घटी, शराव,उदंचनादिक पर्याय छै पिण सर्वनें विषै मृतद्रव्य एक ज छै,सर्व माटीना कहीयै छ। इम सर्वत्र विचारी लेवो। वस्तु थकी सदाई शाश्वतुं सामान्य पिण पर्याय नथी तेहनुं प्रति समयै विनाश छै। अत्र केवल विशेषवादी जे बौद्धचार्वाकादिक तेहनें पूछीयै— तुम्हे जे सामान्य नथी मानता विशेष मानो छो संसारमांहि विशेष छे सामान्य नथी सामान्यतो मानीयें जो कांइ वस्तु शाश्वतु मानीये ते तो सर्व क्षणे क्षयी दीसै छै एहवं तुम्हारा लोकायितशास्त्रमांहि कहिउं छे पिण ते असत्य हैं। ते किम? जो तूं विशेष मानें छे ते विशेष सामान्यथी भिन्न छै किं वा अभिन्न छे? जो तूं सर्वथा भिन्न कहिसै तो ते विशेष अवस्तु स्वभाव हुसें खरविषाण-व्योमकुसुमवंध्यापुत्रनी परें। एतली जें वस्तु कहिवानी छे पिण अवस्तुभूत छे तिम विशेष पिण हुसें। अजें जो सर्वथा अभिन्न कहिसे तो सामान्य तेहि ज विशेष थास्य। ते क्षणभंगुर नही हुई। सामान्यनो विनाश नथी। ते माटें अम्हारउं मत साचुं थयु। जे सामान्य तेहि ज पदार्थ कहियें। सामान्यमांहि सर्व विशेषतुं समावेस छे एतलैं गुणनिःपन्न नाम थयुं। सर्व वस्तुना पर्यायनें संग्रहें तेह ते संग्रह कहिये।। इति संग्रहनयः॥२॥ १. जुओ टिप्पणि ५ २. ते....जाणिवा मो.मु प्रतमा नथी ३. घटमुदाहरणं कृत्वा ब्रूमहे सप्तभंगी। स्याद् घटः(१) स्यादघटः(२) स्याद्धटश्चाघटश्च(३) स्यादवक्तव्यो घटः(४) स्याद् घटश्चावक्तव्यश्च(५) स्यादघटश्चावक्तव्यश्च(६) स्याद्धटश्चाघटश्चावक्तव्यश्चेति(७) सप्तमो भंगः आ वाक्य को. प्रतमां नथी अहीं होवू जोइए। ४. देखिई ५. विशेष कहिई ति वारि वस्त सर्व नित्य हस्यै सामान्यनउ नाश नथी आ प्रमाणे को.प्रतमां छे.
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy