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भासगाहा-३६१६-३६२३] बीओ उद्देसो
४८५ "उच्छंगे." गाहा । जहा दुवग्गाणं भाइभंडाणं तत्थ एगओ आणिज्जं, सा रुट्ठा न पडिगाहेइ । तेहिं से बालउच्छंगे ठविया । बिइयभंगे
वावार मट्टिया असुइलित्तहत्था उ बिइयओ भंगो । दोसु वि गहिए तइओ, चउत्थ भंगे उ पडिसेहो ॥३६२०॥
"वावार०" गाहा । जस्स पेसिया सा किंचि वावारं करेइ, मट्टियाए वा से हत्था लित्ता असुइए वा, भज्जी य से आणिया। ताहे भणइ-ठवेहि अमुगत्थ वा छुभाहि । एस भावओ गहिया ण दव्वओ । तइए दव्वेण वि भावेण वि पडिग्गाहिया । 'चउत्थभंगे उ पडिसेहो 'त्ति रुट्ठिया हत्थेहि वि ण छिवइ कओ गाहाओ (?) । एष प्रथमगाहाया पूर्वार्द्ध व्याख्यातं । एस सुत्तत्थो गओ। सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिरुच्यते – 'दव्वे खेत्ते काले भावम्मि होइ आहडिया' दव्वा हडिया-छिन्न अछिन्ना य । खेत्ते छिन्ना अछिन्ना य काले छिन्ना अछिन्ना य भावे छिन्ना अछिन्ना य । एत्थ वक्खाणं
संकप्पियं व दव्वं, दिवा खेत्तेण कालतो छिन्नं । दोसु उ पसंगदोसा, सागारिएँ भावतो दुविहो ॥३६२१॥ [नि० ] संकप्पियं वा अहवेगपासे, सगारिदिटुं अमुगं तु वेलं । नियट्ट भावे नऽमुगं अदिट्ठा, काले ण निद्देस अछिन्न भावे ॥३६२२॥
"संकप्पियं०" ["संकप्पितं०"] गाहा । जं दव्वं संकप्पियं एयं णेयव्वं, वीसुं ठवियं, एयं छिन्नं अच्छिन्नं अप्फोडियं । खेत्तओ छिन्नं णिज्जंतं, सागारिएण दिटुं अच्छिन्नं, कालओ छिन्नं वेलाए णेयव्वं । वेलाए अणिट्टिाए अछिन्नं । भावओ छिन्नं-ण णेमि त्ति, अच्छिन्नं-नेहामि त्ति जाव भावो-ण णियत्त ति । दोसु वि पसंगदोसा । दव्वओ पडिगाहिया ण भावओ, ण वि दव्वओ पडिगाहिया णावि भावओ । एएसु दोसु वि पसंगदोसेणं ण घेप्पइ न पुण सागारियं पिंडो त्ति काउं, 'सागारिओ२ भावओ दुविहो 'त्ति भावओ वि दव्वओ वि पडिग्गाहिया । एए दो वि सागारियपिंडो त्ति काउं परिहरिज्जंति ।।
भावो जाव न छिज्जड़, विप्परिणय गेण्ह मोत्तु खेत्तं तु ।
खेत्ते वि होति गहणं, अद्दिढे विप्परिणतम्मि ॥३६२३॥ "भावो जाव न छिज्जइ०" गाहा । भावओ अच्छिन्नं न कप्पइ-ण नेमि त्ति
१. इगाहा भ० इति दृश्यते अ ब क ड इ । २. सागारिए मुच ।