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________________ भासगाहा-५६५४-५६६३] चउत्थो उद्देसो 851 "थलसंकमणे०" गाहा / थलेणं गंतव्वं पडिपुच्छिऊण जइ पंथो अत्थि वच्चंति / समुदाणं पंथो वा, वसही वा थलपथेण जति नत्थि / सावततेणभयं वा, संघट्टेणं ततो गच्छे // 5659 // णिभए गारथीणं, तु मग्गतो चोलपट्टमुस्सारे। सभए अत्थग्घे वा, उत्तिण्णेसुं घणं पढें // 5660 // दगतीरे ता चिट्ठे, णिप्पगलो जाव चोलपट्टो तु / सभए पलंबमाणं, गच्छति काएण अफुसंतो // 5661 // "समुदाणं०" गाहा / कण्ठ्या / तओ उदगसंघट्टेणं वच्चंति / तत्थ का जयणा["णिभए गारत्थीणं०" "दगतीरे०"] पायं उक्खिवित्ता पुणो जयणाइ ठवेइ / जाहे जंतुगाओ' उवरि ताहे अंतग्गएण जलेण जयणाए अविल्लोहंतो वच्चइ, जाहे थलं पत्तो भवति ताहे पाए णिप्पगलेइ, इरियावहियं पडिक्कमइ / दगलेवे जइ गिहत्था अत्थि उत्तरंतया जेण ते उत्तरंति तेण उत्तरियव्वं / जइ णत्थि भयं पच्छा तेसु उत्तिन्नेसु उल्लभइ मग्गओ जत्तियं पाणियं पावइ तित्तियं तित्तियं उस्सारेइ उवरिहुत्तं चोलपढें-ओवस्स पच्चवायं अणग्घं२ वा होज्ज पाणियं ताहे पुरओ उल्लुभइ मग्गओ वि ण उल्लुभइ / जाहे ते उद्धतिण्णा ताहे ते उल्लुभइ / तहिं पुण पडिपट्टयं घणं बंधइ, जाहे उत्तिण्णो ताहे तं चोलपट्टयं धरेतो अच्छइ जाव निप्पगलो जाओ। अह सपच्चवायं ताहे गलंतेण वि वच्चइ, ण य अंग अल्लियावेइ / एवं गिहत्थेहिं समं / अह नत्थि गिहत्था, ण य कोइ पुच्छिऊण दीहमहल्ला ताहे उयारं उत्तारं च पडिलेहंति उवगरणं, एक्का जोगं करेंति / एतदेवार्थम् - असइ गिहि णालियाए, आणक्खेउं पुणो वि पडियरणं / एगाभोगं च करे, उवकरणं लेव उवरिं वा // 5662 // "असइ गिहि०" गाहा / कण्ठ्या / बितियपद तेण सावय, भिक्खे वा कारणे व आगाढे। कज्जुवहि मगर छुब्भण, नावोदग तं पि जतणाए // 5663 // "बितियपद०" गाहा / बिइयपदे णावाए वा लेवोवरियादीहि वा गच्छेज्ज विज्जमाणे वि थलपरिहारे / तेणा दुविहा-सावया वा परिहारेण भिक्खं वा णत्थि परिहारेणं, आगाढं णाम 1. जंघाओ इति भाव्यम् ? 2. चोलपट्टयं / [ अह] तत्थ पच्चवायं अत्थग्धं इति भाव्यम् ?
SR No.007787
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages423
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size4 MB
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