________________
८१०
विसेसचुणि
[ गणंतरोवसंपयपगयं
कप्पति से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तए । ते य से वितरंति एवं से कप्पति जाव विहरित्तए । ते य से णो वितरंति एवं से णो कप्पति जाव विहरित्तए ॥४-२१॥
आयरियउवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पति आयरियउवज्झायस्स आयरिय उवज्झायत्तं णिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । णो से कप्पति अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पति से आपुच्छित्ता जाव विहरित्तए । ते य से वितरंति एवं से कप्पति अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से णो वियरंति एवं से णो कप्पति अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ॥४-२२॥
भिक्खू य गणातो अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पति अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव अन्नं गणं संभोगवडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पति से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव विहरित्तए । ते य से वियरंति एवं से कप्पड़ जाव विहरित्तए; ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पड़ जाव विहरित्तए । जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा एवं से कप्पति अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा एवं से नो कप्पति अन्नं गणं जाव विहरित्तए ॥४-२३॥
" भिक्खू इच्छेज्ज अन्नगणं संभोगपडियाए० " अत्र त्रिण्येव सूत्राणि उच्चारेयव्वाणि ।
संभोगो विहु तिहिँ कारणेहिँ नाणट्ठ दंसण चरिते । संकमणे चउभंगो, पढमो गच्छम्मि सीयंते ॥५४५३ ॥
“संभोगो वि हु०” गाहा । णाणट्ठा दंसणट्ठाए य व्याख्यातो (तम् ।) चरित्तट्टयाए इमो विसेसो- जम्मि गच्छे सो अच्छइ सो गच्छो सीयइ ण आयरियो । एवं भंगा ४ । १
१. गच्छो न सीयइ आयरियो सीयइ । गच्छो न सीयइ आयरियो वि ण सीयइ । गच्छो वि सीयइ आयरियो वि सीयइ ।