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संबंधित उत्सर्गमार्ग, विपर्यासजन्य दोष, प्रायश्चित्त, अपवाद, यतनाएँ आदि बातों का विचार किया गया है।
४. दुर्गप्रकृतसूत्र—इस प्रसंग पर यह बताया गया है कि श्रमण-श्रमणियों को दुर्ग अर्थात् विषम मार्ग से नहीं जाना चाहिये। इसी प्रकार पंक आदि वाले मार्ग से भी नहीं जाना चाहिए। ५. क्षिप्तचित्तादिप्रकृतसूत्र—विविध कारणों से क्षिप्तचित्त हुई निग्रंथी को समझाने का क्या मार्ग है, क्षिप्तचित्त निग्रंथी की देख-रेख की क्या विधि है, दीप्तचित्त होने के क्या कारण हैं, दीप्तचित्त श्रमणी के लिए किन यतनाओं का परिपालन आवश्यक है— आदि प्रश्नों का विचार करते हुए आचार्य उन्माद, उपसर्ग, अधिकरण क्लेश, प्रायश्चित्त, भक्तपान, अर्थजात आदि विषयों की दृष्टि से निग्रंथीविषयक विधि-निषेधों का विवेचन किया है।'
६. परिमन्थप्रकृतसूत्र— साधुओं के लिए छः प्रकार के परिमन्थ अर्थात् व्याघात माने गए हैं – १. कौकुचिक, २. मौखरिक, ३. चक्षुर्लोल, ४. तितिणिक, ५. इच्छालोभ, ६. भिच्चानिदानकरण। प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या में इन परिमन्थों के स्वरूप, दोष, अपवाद आदि का विचार किया गया है।
७. कल्पस्थितिप्रकृतसूत्र—इस सूत्र का व्याख्यान करते हुए भाष्यकार ने निम्नलिखित छः प्रकार की कल्पस्थितियों का वर्णन किया है – १. सामायिककल्पस्थिति, २. छेदोपस्थापनीयकल्पस्थिति, ३. निर्विशमानकल्पस्थिति, ४. निर्विष्टकायिककल्पस्थिति, ५. जिनकल्पस्थिति, ६. स्थविरकल्पस्थिति। छेदोपस्थापनीयकल्पस्थिति का दस स्थानों द्वारा निरूपण किया है—१. आचेलक्यकल्पद्वार—अचेलक का स्वरूप, अचेलक-सचेलक का विभाग, वस्त्रों का स्वरूप आदि, २. औद्देशिककल्पद्वार, ३. शय्यातरपिंडकल्पद्वार, ४. राजपिंडकल्पद्वार राजा का स्वरूप, आठ प्रकार के राजपिण्ड आदि, ५. कृतिकल्पद्वार, ६. व्रतकल्पद्वार—पंचव्रतात्मक और चतुतात्मक धर्म की व्यवस्था, ७. ज्येष्ठकल्पद्वार, ८. प्रतिक्रमणकल्पद्वार, ९. मासकल्पद्वार, १०. पर्युषणाकल्पद्वार।
बृहत्कल्प सूत्र के प्रस्तुत भाष्य की समाप्ति करते हुए आचार्य ने कल्पाध्ययन शास्त्र के अधिकारी और अनधिकारी का संक्षिप्त निरूपण किया है।"
बृहत्कल्प-लघुभाष्य के इस सारग्राही संक्षिप्त परिचय से स्पष्ट है की इसमें जैन साधुओं-मुनियोंश्रमणों-निग्रंथों-भिक्षओं के आचार-विचार का अत्यंत सूक्ष्म एवं सतर्क विवेचन किया गया है। विवेचन के कुछ स्थल ऐसे भी हैं जिनका मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अच्छा अध्ययन हो सकता है।
१. गा.६१६३-६१८१। २. गा.६१८२-६१९३। ३. गा.६१९४-६३१०। ४. गा.६३११-६३४८। ५. गा.६३४९-६४९०।
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