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________________ आतापना का स्वरूप, निर्ग्रथी के लिए उपयुक्त आतापनाएँ, स्थानायत प्रतिमास्थित, निषद्या, उत्कटिकासन, वीरासन, दण्डासन, लगण्डशायी, अवाङ्मुख, उत्तान, आम्रकुब्ज, एकपार्श्वशायी आदि आसनों का स्वरूप और निग्रंथियों के लिए तद्विषयक विधि - निषेध, निर्ग्रथिंयों के लिए आकुंचनपट्ट के उपयोग का निषेध, निर्ग्रथियों के लिए सावश्रय आसन, सविषाण पीठफलक, सवृंत अलाबु, सवृंत पात्रकेसरिका और दारुदंडक के उपयोग का प्रतिषेध । ' २ ८. मोकप्रकृतसूत्र—निर्ग्रथ-निर्ग्रथियों के लिए परस्पर मोक के आचमन आदि का निषेध ' ९. परिवासितप्रकृतसूत्र—परिवासित आहार का स्वरूप, परिवासित आहार और अनाहार विषयक दोष, अपवाद आदि, परिवासित आलेपनद्रव्य के उपयोग का निषेध, परिवासित तेल आदि से अभ्यंगन आदि करने का निषेध । १०. व्यवहारप्रकृतसूत्र—परिहारकल्पस्थित भिक्षु को लगने वाले कारणजन्य अतिक्रमादि दोष और उनका प्रायश्चित्त आदि। * ११. पुलाकभक्तप्रकृतसूत्र — धान्यपुलाक, गंधपुलाक और रसपुलाक का स्वरूप, पुलाकभक्तविषयक दोषों का वर्णन, निर्ग्रथियों के लिए पुलाकभक्त का निषेध।' षष्ठ उद्देश: इस उद्देश में वचन आदि से संबंधित सात प्रकार के सूत्र हैं। भाष्यकार संघदासगण क्षमाश्रम ने इन सूत्रों की व्याख्या में जिन विषयों पर प्रकाश डाला है उनका क्रमशः परिचय इस प्रकार है १. वचनप्रकृतसूत्र—निर्ग्रथ-निर्ग्रथियों को अलीक, हीलित, खिंसित, पुरुष, अगारस्थित और व्यवशमितोदीरण वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन्हें अवचन अर्थात् दुर्वचन कहा गया है। अलीक वचन के निम्नलिखित सत्रह स्थान हैं— १. प्रचला, २. आर्द्र, ३. मरुक, ४. प्रत्याख्यान, ५. गमन, ६. पर्याय, ७. समुद्देश, ८. संखडी, ९. क्षुल्लक, १०. पारिहारिक, ११. घोटकमुखी, १२. अवश्यगमन, १३. दिग्विषय, १४. एककुलगमन, १५. एकद्रव्यग्रहण, १६. गमन, १७. भोजन २. प्रस्तारप्रकृतसूत्र—–इस सूत्र की व्याख्या में प्राणवधवाद, मृषावाद, अदत्तादानवाद, अविरतिवाद, अपुरुषवाद और दासवादविषयक प्रायश्चितों के प्रस्तारों - रचना के विविध प्रकारों क निरूपण किया गया है। साथ ही प्रस्तार विषयक अपवादों का भी विधान किया गया है। ३. कण्टकाद्युद्धरणप्रकृतसूत्र — इस प्रसंग पर निर्ग्रथ - निर्ग्रथीविषयक कंटक आदि के उद्धरण से १. गा. ५९१९–५९७५ । ५. गा. ६०४७-६०५९। २. गा. ५९७६ - ५९९६ । ६. गा. ६०६०-६१२८ । ७. गा.६१२९-६१६२/ ३. गा. ५९९७-६०३२ । ४. गा. ६०३३ - ६०४६ | (६८)
SR No.007786
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages504
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size3 MB
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