________________
पंचम उद्देशः
इस उद्देश में ब्रह्मापाय आदि ग्यारह प्रकार के सूत्र हैं। भाष्यकार ने इन सूत्रों की व्याख्या में निम्न विषयों का समावेश किया है—
१. ब्रह्मापायप्रकृतसूत्र गच्छसंबंधी शास्त्र-स्मरणविषयक व्याघातों का धर्मकथा, महर्द्धिक, आवश्यकी, नैषधिकी, आलोचना, वादी, प्राघूर्णक, महाजन, ग्लान आदि द्वारों से निरूपण, शास्त्रस्मरण के लिए गुरु की आज्ञा, गच्छवास के गुणों का वर्णन।'
२. अधिकरणप्रकृतसूत्र—अधिकरण-क्लेश की शांति न करते हुए स्वगण को छोड़कर अन्य गण में जाने वाले भिक्षु, उपाध्याय, आचार्य आदि से संबंधित प्रायश्चित्त, क्लेश के कारण गच्छ का त्याग न करते हुए क्लेशयुक्त चित्त से गच्छ में रहने वाले भिक्षु आदि को शांत करने की विधि, शांत न होने वाले को लगने वाले दोष, प्रायश्चित्त आदि।'
३. संस्तृतनिर्विचिकित्सप्रकृतसूत्र—सशक्त अथवा अशक्त भिक्षु आदि सूर्य के उदय और अस्ताभाव के प्रति निःशंक होकर आहार आदि ग्रहण करते हों और बाद में ऐसा मालूम हो कि सूर्योदय हुआ ही नहीं है अथवा सूर्यास्त हो गया है ऐसी दशा में आहार आदि का त्याग कर देने पर उनकी रात्रिभोजनविरति अखंडित ही रहती है। जो सूर्योदय और सूर्यास्त के प्रति शंकाशील होकर आहारादि ग्रहण करते हैं उनकी रात्रिभोजनविरति खंडित होती है— इस सिद्धांत का प्रतिपादन।
४. उद्गारप्रकृतसूत्र–भिक्षु, आचार्य आदि संबंधी उद्गार, वमनादि विषयक दोष, प्रायश्चित्त आदि, उद्गार के कारण, उद्गार की दृष्टि से भोजन विषयक विविध आदेश, तद्विषयक अपवाद आदि।'
५. आहारविधिप्रकृतसूत्र— जिस प्रदेश में आहार, जल आदि जीवादि से संसक्त ही मिलते हों उस प्रदेश में जाने का विचार, प्रयत्न आदि करने से लगने वाले दोष, प्रायश्चित्त आदि, अशिव, दुर्भिक्ष आदि कारणों से ऐसे प्रदेश में जाने का प्रसंग आने पर तद्विषयक विविध यतनाएँ।
६. पानकविधिप्रकृतसूत्र—पानक अर्थात् पानी के ग्रहण की विधि, उसके परिष्ठापन की विधि, तद्विषयक अपवाद आदि।
७. ब्रह्मरक्षाप्रकृतसूत्र—पशु-पक्षी के स्पर्श आदि से संभावित दोष, प्रायश्चित्त आदि, अकेली रहनेवाली निग्रंथी को लगने वाले दोष, प्रायश्चित्त, अपवाद आदि, नग्न निग्रंथी को लगने वाले दोष
आदि, पात्ररहित निग्रंथी को लगने वाले दोष आदि, निग्रंथी के लिए व्युत्सृष्ट काय की अकल्प्यता, निपॅथी के लिए ग्राम, नगर आदि के बाहर आतापना लेने का निषेध, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट
१. गा.५६८२-५७२५। २. गा.५७२६-५७८३। ३. गा.५७८४-५८२८। ४. गा.५८२९-५८६०। ५. गा.५८६१-५८९६। ६. गा.५८९७-५९१८।
(६७)