________________
वगडाप्रकृतसूत्रः
वगडा का अर्थ है परिक्षेप–कोट परिखा–प्राचीर-चहारदीवारी। एक परिक्षेप और एक द्वार वाले ग्राम, नगर आदि में निग्रंथ-निग्रंथियों को एक साथ नहीं रहना चाहिए। प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने एतत्संबंधी दोषों, प्रायश्चित्तों आदि पर प्रकाश डाला है। इस विवेचन में निम्न बातों का समावेश किया गया है—एक परिक्षेप और एक द्वार वाले क्षेत्र में निग्रंथ अथवा निग्रंथियों के एक समुदाय के रहते हुए दूसरे समुदाय के आकर रहने पर उसके आचार्य, प्रवर्तिनी आदि को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए भेजे गए श्रमणों की प्रेरणा से साध्वियों द्वारा अवगृहीत क्षेत्र को दबाने का विचार करने वाले तथा उस क्षेत्र में जाने का निर्णय करने वाले आचार्य, उपाध्याय आदि के लिए प्रायश्चित्त, वेदोदय आदि दोषों का अग्नि, योद्धा और गारुडिक के दृष्टांतों द्वारा समर्थन, श्रमण और श्रमणियां भिन्न भिन्न उपाश्रय में रहते हुए एक-दूसरे के सहवास से दूर रह सकते हैं किंतु ग्राम आदि में रहने वाले श्रमणों के लिए गृहस्थ स्त्रियों का सहवास तो अनिवार्य है, ऐसी दशा में श्रमणों के लिए वनवास ही श्रेष्ट है— इस प्रकार की शंका का समाधान, श्रमणियों के सहवास वाले ग्राम आदि के त्याग के कारण, एक वगडा और एक द्वार वाले क्षेत्र में रहने वाले साधुसाध्वियों की विचारभूमि स्थंडिलभूमि, भिक्षाचर्या, विहारभूमि, चैत्यवंदन आदि कारणों से लगने वाले दोष और उनके लिए प्रायश्चित्त, एक वगडा आदि वाले जिस क्षेत्र में श्रमणियाँ रहती हों वहाँ रहने वाले श्रमणों से कुलस्थविरों द्वारा रहने के कारणों की पूछताछ, कारणवशात् एक क्षेत्र में रहने वाले श्रमण-श्रमणियों के लिए विचारभूमि, भिक्षाचर्या आदि विषयक व्यवस्था, भिन्न-भिन्न समुदाय के श्रमण अथवा श्रमणियाँ एक क्षेत्र में एक साथ रहे हुए हों और उनमें परस्पर कलह होता हो तो उसकी शांति के लिए आचार्य, प्रवर्तिनी आदि द्वारा किए जाने वाले उपाय, न करने वाले को लगने वाले कलंकादि दोष और उनका प्रायश्चित्त।'
साधु-साध्वियों को एक वगडा और अनेक द्वार वाले स्थान में एक साथ रहने से जो दोष लगते हैं उनका निम्न द्वारों से विचार किया गया है—
१. एकशाखिकाद्वार—एक कतार में बने हुए बाड़ के अंतर वाले घरों में साथ रहने वाले साधुसाध्वियों को परस्पर वार्तालाप, प्रश्नोत्तर आदि के कारण लगने वाले दोष,
२. सप्रतिमुखाद्वार एक दूसरे के द्वार के सामने वाले घर में रहने से लगने वाले दोष, __ ३ पार्श्वमार्गद्वार एक-दूसरे के पास के अथवा पीछे के दरवाजे वाले उपाश्रय में रहने से लगने वाले दोष,
१. गा.२१२५-२२३१॥
(४७)