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________________ कारण तथा उस क्षेत्र में रहने एवं भिक्षाचर्या करने की विधि पर प्रकाश डाला गया है। मासकल्पविषयक द्वितीय सूत्र का व्याख्यान करते हुए आचार्य ने इस बात का प्रतिपादन किया है कि यदि ग्राम, नगर आदि दुर्ग के अंदर और बाहर इन दो विभागों में बसे हुए हों तो अंदर और बाहर मिलाकर एक क्षेत्र में दो मास तक रहा जा सकता है। इसके साथ ही ग्राम, नगरादि के बाहर दूसरा मासकल्प करते समय तृण, फलक आदि ले जाने की विधि की चर्चा की गई है तथा अविधि से ले जाने पर लगने वाले दोषों और प्रायश्चित्तों का वर्णन किया गया है। ' निग्रंथियाँ = साध्वियाँ: मासकल्पविषयक तृतीय सूत्र की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने निर्ग्रथी विषयक विशेष विधि-निषेध की चर्चा की है।' इस चर्चा में निम्न विषयों का समावेश किया गया है— निर्ग्रथी के मासकल्प की मर्यादा, विहार का वर्णन, निर्ग्रथियों के समुदाय का गणधर और उसके गुण, द्वारा क्षेत्र की प्रतिलेखना, स्वयं निर्ग्रथी द्वारा अपने रहने योग्य क्षेत्र की प्रतिलेखना करने का निषेध तथा भडौच(भरुच) में बौद्ध श्रावकों द्वारा किये गए साध्वियों के अपहरण का वर्णन, साध्वियों के रहने योग्य क्षेत्र के गुण, साध्वियों के रहने योग्य वसति = उपाश्रय और उसका स्वामी, साध्वियों के योग्य स्थंडिलभूमि, साध्वियों को उनके रहने योग्य क्षेत्र में ले जाने की विधि, वाकद्वार, भक्तार्थनाविधिद्वार, विधर्मी आदि की ओर से होने वाले उपद्रवों से बचाव, भिक्षा के लिए जाने वाली साध्वियों की संख्या, समूहरूप से भिक्षाचर्या के लिए जाने के कारण और यतनाएँ, साध्वियों के ऋतुबद्ध काल के अतिरिक्त एक क्षेत्र में दो महीने तक रह सकने के कारण। मासकल्पविषयक चतुर्थ सूत्र का विवेचन करते हुए यह बताया गया है कि ग्राम, नगर आदि दुर्ग के भीतर और बाहर बसे हुए हों तो भीतर और बाहर मिलाकर एक क्षेत्र में चार मास तक साध्वियाँ रह सकती हैं। इससे अधिक रहने पर कुछ दोष लगते हैं जिनका प्रायश्चित्त करना पड़ता है। आपवादिक कारणों से अधिक समय तक रहने की अवस्था में विशेष प्रकार की यतनाओं का सेवन करना चाहिए। स्थविरकल्प और जिनकल्प इन दोनों में कौन प्रधान है ? निष्पादक और निष्पन्न इन दो दृष्टियों से दोनों ही प्रधान हैं। स्थविरकल्पसूत्रार्थग्रहण आदि दृष्टियों से जिनकल्प का निष्पादक है, जबकि जिनकल्प ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि दृष्टियों से निष्पन्न है। इस प्रकार दोनों ही महत्त्वपूर्ण अवस्थाएँ होने के कारण प्रधान-महर्द्धिक है। इस दृष्टिकोण को विशेष स्पष्ट करने के लिए भाष्यकार ने गुहासिंह, दो स्त्रियों और दो गोवर्गों के दृष्टांत दिए हैं। १. गा. २०३४- २०४६ । २.गा. २०४७ - २१०५ । ३.गा. २१०६ - ८ । ४.गा. २१०९ - २१२४ । (४६)
SR No.007786
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages504
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size3 MB
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