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पारस्परिक कलहों को निपटाने का कार्य करना पड़े उससे लगनेवाले दोष, रथयात्रा के मेले में साधुओं को जाने के विशेष कारण—चैत्यपूजा, राजा और श्रावक का विशेष निमंत्रण, वादी की पराजय, तप और धर्म का माहात्म्य-वर्धन, धर्मकथा और व्याख्यान, शंकित अथवा विस्मृत सूत्रार्थ का स्पष्टीकरण, गच्छ के आधारभूत, योग्य शिष्य आदि की तलाश, तीर्थप्रभावना, आचार्य, उपाध्याय, राज्योपद्रव आदि संबंधी समाचार की प्राप्ति, कुल-गण-संघ आदि का कार्य, धर्मरक्षा तथा इसी प्रकार के अन्य महत्त्व के कारण रथयात्रा के मेले में रखने योग्य यतनाएँ, चैत्यपूजा, राजा आदि की प्रार्थना आदि कारणों से रथयात्रा के मेले में जानेवाले साधुओं को उपाश्रय आदि की प्रतिलेखना किस प्रकार करनी चाहिए, भिक्षाचर्या किस प्रकार करनी चाहिए, स्त्री, नाटक आदि के दर्शन का प्रसंग उपस्थित होने पर किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, मंदिर में जाले, नीड आदि होने पर किस प्रकार यतना रखनी चाहिए, क्षुल्लक शिष्य भ्रष्ट न होने पाएँ तथा पार्श्वस्थ साधुओं के विवाद किस प्रकार निपट जाएँ इत्यादि। पुरःकर्मद्वार—पुर:कर्म का अर्थ है भिक्षादान के पूर्व शीतल जल से दाता द्वारा स्वहस्त आदि का प्रक्षालन। इस द्वार की चर्चा करते समय निम्न दृष्टियों से विचार किया गया है— पुरःकर्म क्या है, पुरःकर्म दोष किसे लगता है, कब लगता है, पुर:कर्म किसलिए किया जाता है, पुरःकर्म
और उदकार्द्रदोष में अंतर ( उदकाई और पुरःकर्म में अप्काय का समारंभ तुल्य होते हुए भी उदका सूख जाने पर तो भिक्षा आदि का ग्रहण होता है किंतु पुरःकर्म के सूख जाने पर भी ग्रहण का निषेध है), पुरःकर्मसंबंधी प्रायश्चित्त, पुरःकर्मविषयक अविधिनिषेध और विधिनिषेध, सात प्रकार के अविधिनिषेध, आठ प्रकार के विधिनिषेध, पुरःकर्मविषयक ब्रह्महत्या का दृष्टांत। ग्लानद्वार—ग्लान रुग्ण साधु के समाचार मिलते ही उसका पता लगाने के लिए जाना चाहिए, वहाँ उसकी सेवा करने वाला कोई है कि नहीं— इसकी जाँच करनी चाहिए, जाँच न करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, ग्लान साधु की श्रद्धा से सेवा करने वाले के लिए सेवा के प्रकार, ग्लान साधु की सेवा के लिए किसी की विनती या आज्ञा की अपेक्षा रखने वाले के लिए प्रायश्चित्त
और तद्विषयक महर्द्धिक राजा का उदाहरण, ग्लान की सेवा करने में अशक्ति का प्रदर्शन करने वाले को शिक्षा, ग्लान साधु की सेवा के लिए जाने में दुःख का अनुभव करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, उद्गम आदि दोषों का बहाना करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, ग्लान साधु की सेवा के बहाने से गृहस्थों के यहाँ से उत्कृष्ट पदार्थ, वस्त्र, पात्र आदि लाने वाले तथा क्षेत्रातिक्रांत, कालातिक्रांत आदि दोषों का सेवन करने वाले लोभी साधु को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, ग्लान साधु के लिए पथ्यापथ्य किस प्रकार लाना चाहिए, कहाँ से लाना चाहिए,
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