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________________ वसतियों में ठहरे हुए हों उस क्षेत्र की दृष्टि से भिक्षा लेने की सामाचारी इत्यादि। इसी प्रकार स्थविरकल्पिकों की सामान्य सामाचारी, स्थिति आदि का वर्णन किया गया है। गच्छवासियों स्थविरकल्पिकों की विशेष सामाचारी का भी भाष्यकार ने विस्तृत वर्णन किया है। इस वर्णन में निम्न बातों पर प्रकाश डाला गया है— १. प्रतिलेखनाद्वार वस्त्रादि की प्रतिलेखना का काल, प्राभातिक प्रतिलेखना के समय से संबंधित विविध आदेश, प्रतिलेखना के दोष और प्रायश्चित्त, प्रतिलेखना में अपवाद। २. निष्क्रमणद्वार—गच्छवासी आदि को उपाश्रय से बाहर कब और कितनी बार निकलना चाहिए ३. प्राभृतिकाद्वार—सूक्ष्म और बादर प्राभृतिका का वर्णन, गृहस्थादि के लिए तैयार किये गए घर, वसति आदि में रहने और न रहने संबंधी विधि और प्रायश्चित्त। ४. भिक्षाद्वार—किस एषणा से पिंड आदि का ग्रहण करना चाहिए, कितनी बार और किस समय भिक्षा के लिए जाना चाहिए, मिलकर भिक्षा के लिए जाना, अकेले भिक्षा के लिए जाने के कल्पित कारण और तत्संबंधी प्रायश्चित्त, भिक्षा के लिए उपकरण आदि की व्यवस्था। कल्पमरणद्वार—पात्र धोने की विधि, लेपकृत और अलेपकृत द्रव्य, पात्र-लेप से होनेवाले लाभ और तद्विषयक एक श्रमण का दृष्टांत, पात्र धोने के कारण और तद्विषयक प्रश्नोत्तर। ६. गच्छशतिकाद्वार—सात प्रकार की सौवीरिणियाँ—१. आधाकर्मिक, २. स्वगृहयतिमिश्र, ३. स्वगृहपाखण्डमिश्र, ४. यावदर्थिकमिश्र, ५. क्रीतकृत, ६. पूतिकर्मिक, ७. आत्मर्थकृत; इनके अवांतर भेद-प्रभेद और एतद्विषयक विशोधि-अविशोधि कोटियाँ। ७. अनुयानद्वार तीर्थंकर आदि के समय जब सैकडों गच्छ एक साथ रहते हों तब आधाकर्मिकादि पिंड से बचना कैसे संभव है—इस प्रकार की शिष्य की शंका और उसका समाधान तथा प्रसंगवशात् अनुयान अर्थात् रथयात्रा का वर्णन, रथयात्रा देखने जाते समय मार्ग में लगनेवाले दोष, वहाँ पहुँच जाने पर लगनेवाले दोष, साधर्मिक चैत्य, मंगलचैत्य, शाश्वत चैत्य और भक्तिचैत्य, रथयात्रा के मेले में जानेवाले साधु को लगनेवाला आधाकर्मिक दोष, उद्गम दोष, नवदीक्षित का भ्रष्ट होना, स्त्री, नाटक आदि देखने से लगनेवाले दोष, स्त्री आदि के स्पर्श से लगनेवाले दोष, मंदिर आदि स्थानों में लगे हुए जाले, नीड, छत्ते आदि को गिराने के लिए कहने-न कहने से लगनेवाले दोष, पार्श्वस्थ आदि के क्षुल्लक शिष्यों को अलंकारविभूषित देखकर क्षुल्लक श्रमण पतित हो जाएँ अथवा पार्श्वस्थ साधुओं के १.गा.१४४७–१६२२। २.गा.१६२३-१६५५। ३.गा.१६५६-२०३३। (४३)
SR No.007786
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages504
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size3 MB
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