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________________ एकार्थवाची है। प्रथम उद्देशक के अंत मे आर्यक्षेत्रप्रकृत सूत्र का व्याख्यान है जिसमें आर्य पद का नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, भाषा, शिल्प, ज्ञान दर्शन और चारित्र—इन बारा प्रकार के निक्षेपों से विचार किया गया है। आर्य क्षेत्र की मर्यादा भगवान् महावीर के समय से ही है, इस बात का निरूपण करते हए आर्यक्षेत्र के बाहर विचरण करने से लगने वाले दोषों का स्कंदकाचार्य के दृष्टांत के साथ दिग्दर्शन किया गया है। साथ ही ज्ञान, दर्शन, चारित्र की रक्षा और वृद्धि के लिए आर्यक्षेत्र के बाहर विचरने की आज्ञा भी दी गई है जिसका संप्रतिराज के दृष्टांत से समर्थन किया गया है। इसी प्रकार आगे के उद्देशकों का भी निक्षेप-पद्धतिसे व्याख्यान किया गया है। भाष्य और भाष्यकार आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक टीकाएं नियुक्तियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। नियुक्तियों की व्याख्यान-शैली बहुत गूढ एवं संकोचशील है। किसी भी विषय का जितने विस्तार से विचार होना चाहिए, उसका उनमें अभाव है। इसका कारण यही है कि उनका मुख्य उद्देश्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना है, न कि किसी विषय का विस्तृत विवेचन। यही कारण है कि नियुक्तियों की अनेक बातें बिना आगे की व्याख्याओं की सहायता के सरलता से समझ में नहीं आतीं। नियुक्तियों के गूढार्थ को प्रकटरूप में प्रस्तुत करने के लिए आगे के आचार्यों ने उन पर विस्तृत व्याख्या लिखना आवश्यक समझा। इस प्रकार नियुक्तियों के गूढार्थ की प्रकटरूप में प्रस्तुत करने के लिए आगे के आधार पर अथवा स्वतंत्ररूप से जो पद्यात्मक व्याख्याएं लिखी गई वे भाष्य के रूप में प्रसिद्ध हैं। नियुक्तियों की भाँति भाष्य भी प्राकृत में ही है। भाष्य जिस प्रकार प्रत्येक आगम-ग्रंथ पर नियुक्ति न लिखी जा सकी उसी प्रकार प्रत्येक नियुक्ति पर भाष्य भी नहीं लिखा गया। निम्नलिखित आगम-ग्रंथों पर भाष्य लिखे गये है: १) आवश्यक, २) दशवैकालिक, ३) उत्तराध्ययन, ४) बृहत्कल्प, ५) पंचकल्प, ६) व्यवहार, ७) निशीथ, ८) जीतकल्प, ९ ओघनियुक्ति, १०) पिंडनियुक्ति। संघदासगणि संघदासगणि भी भाष्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके दो भाष्य उपलब्ध है। बृहत्कल्पलघुभाष्य और पंचकल्प-महाभाष्य। मुनि श्री पुण्यविजयजी के मतानुसार संघदासगणि नाम के दो आचार्य हुए है। एक वसुदेवहिंडि—प्रथम खंड के प्रणेता और दूसरे बृहत्कल्प-लघुभाष्य तथा १. गा.२६७८। २. गा.३२६३। ३. गा.३२७१-३२८९। (३६)
SR No.007786
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages504
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size3 MB
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