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यदि प्राचीर के भीतर एवं बाहर इन दो विभागों में बसे हुए हों तो ऋतुबद्धकाल में भीतर एवं बाहर मिला कर एक क्षेत्र में निर्ग्रथ एक साथ दो मास तक (एक मास अंदर एवं एक मास बाहर) रह सकते हैं। अंदर रहते समय भिक्षाचर्या आदि अंदर एवं बाहर रहते समय भिक्षाचर्या आदि बाहर ही करना चाहिए।
निर्ग्रथियों के लिए यह मर्यादा दुगुनी है। बाहर की वसति से रहित ग्राम आदि में निर्ग्रथियाँ ऋतुबद्धकाल में लगातार दो मास तक रह सकती है। बाहर की वसति वाले ग्रामादिक में दो महीने भीतर एवं दो महीने बाहर इस प्रकार कुल चार मास तक एक क्षेत्र में रह सकती हैं। भिक्षाचर्या आदि के नियम निर्ग्रथों के समान हि समझने चाहिए।
वगडाविषयक प्रथम सूत्र में एक परिक्षेप (प्राचीर) एवं एक द्वार वाले ग्राम आदि में निर्ग्रथनिर्ग्रथियों के एक साथ(एक ही समय ) रहने का निषेध किया गया है। द्वितीय सूत्र में इसी बात का विशेष स्पष्टीकरण किया गया है। अनेक परिक्षेप अनेक द्वार वाले ग्रामादि में साधु-साध्वियों को एक ही समय रहना कल्प्य है।
आपणगृहादिसंबंधी सूत्रों में बतलाया गया है कि जिस उपाश्रय के चारों ओर दुकानें हों, जो गली के किनारे पर हो, जहाँ तीन, चार अथवा छः रास्ते मिलते हों; जिसके एक ओर अथवा दोनों ओर दुकाने हों वहाँ साध्वियों को नहीं रहना चाहिए। साधु इस प्रकार के स्थानों में यतनापूर्वक रह सकते हैं।'
अपावृतद्वारोपाश्रयविषयक सूत्रों में बतलाया गया है कि निग्रंथियों को बिना दरवाजे के खुले उपाश्रय में नहीं रहना चाहिए। द्वारयुक्त उपाश्रय न मिलने की दशा में अपवादरूप से परदा लगा रहना कल्प्य है। निर्ग्रथों को बिना दरवाजे के उपाश्रय में रहना कल्प्य है।
घटीमात्रप्रकृत सूत्रों में निर्ग्रथियों के लिए घटीमात्रक (घड़ा)' रखने एवं उसका उपयोग करने का विधान किया गया है जबकि निर्ग्रथियों के लिए घट रखने एवं उसका उपयोग करने का निषेध किया गया है।
चिलिमिलिकाप्रकृत सूत्र में निर्ग्रथ-निर्ग्रथियों को कपड़े की चिलिमिलिका (परदा) रखने एवं उसका उपयोग करने की अनुमति प्रदान की गई है।
कतीरप्रकृत सूत्र में सूत्रकार ने बतलाया है कि निर्ग्रथ-निर्ग्रथियों को जलाशय आदि के समीप
१. नो कप्पइ निग्गंथीणं आवणगिहंसि वा रच्छामुहंसि वा सिंघाडगंसि वा चउक्कंसि वा चच्चरंसि वा अंतरावणंसि वा वत्थए। कप्पई निग्गंथाणं आवणगिहंसि वा जाव अंतरावणंसि वा वत्थए । २. 'घटीमात्रकं' घटीसंस्थानं मृन्मयभाजनविशेषम्। क्षेमकीर्तिकृ वृत्ति, पृ. ६७०।
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