SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भासगाहा - १८३१-१८४३ ] पढो उद्देस १५३ “एगस्स पुरेकम्मं०" [" जेसिं० " ] गाहाद्वयं कण्ठ्यम् । पुनरप्याह चोयकः - यद्येषः १ दोष:, तो इमा विहि परिहरणाए । मा अद्धाण निग्गयाइं गिहिस्संति त्ति काउं - अद्धाणनिग्गयाई, उब्भामग खमग अक्खरे रिक्खा । मग्गण कहण परंपर, सुव्वत्तमजाणगा ते वि ॥ १८३८ ॥ 'अद्धाण निग्गयाइं०" गाहा । अस्य विभाषा । उब्भामगऽणुब्भामगसगच्छपरगच्छजाणणट्ठाए । अच्छइ तहियं खमओ, तस्सऽसइ स एव संघाडो ॥ १८३९ ॥ जइ एगस्स वि दोसा, अक्खर न उ ताइँ सव्वतो रिक्खा । जड़ फुसण संकदोसा, हिंडंता चेव साहंति ॥१८४०॥ "उब्भामगणुब्भामग०" [" जइ एगस्स०] गाहाद्वयम् । परिहरणत्थं खमओ उवेट्टओ घरसमवे अच्छउ । अह नत्थि खमओ सइ वा खमए जइ एगागी इत्थीदोसाणं निग्गहस्स अस[म]त्थो, ताहे संघाडइल्लो से दिज्जइ । सो चेव वा संघाडगो, तस्स असइ अक्खराई लिक्खंतु । न तु सव्वे अक्खरइत्ता, तो रिक्खा कज्जउ । जइ फुसणसंकादोसो तो 'मग्गण 'त्ति पच्छिमाणं साहूणं मग्गणं काउं साहंति परंपरएण हिंडंता चेव । आयरिओ भइ - सुवत्तमताणुगाण वि । एसा अविही भणिया, सत्तविहा खलु इमा विही होइ । तत्थाई चरमदुए, अत्तट्ठियमाइ गीयस्स || १८४१ ॥ 'एसा अविही भणिया०" गाहा । को पुण सो अट्ठविहो विही ? एगस्स बीयगहणे, पसज्जणा तत्थ होइ कप्पट्ठी । वारण ललियासणिओ, गंतूणं कम्म हत्थ उप्फोसे ॥१८४२ ॥ "एगस्स बीयगहणे० " दारगाहा । 'तत्थाई चरमदुए० ' त्ति । पढमं च दारं अंतिम य दुवे दारा एते तिन्नि वि अत्तट्ठिया कप्पंति गीयत्थस्स । 'एगस्स बिइयगहणे' त्ति एयं वक्खाणे एगेण समाद्धे, अन्नो पुण जो तहिं सयं देइ । जयजाणगा भवंती, परिहरियव्वं पयत्तेण ॥१८४३ ॥ "एगेण समारुद्धे० " गाहा । एगेण पुरेकम्मं कयं तं साहूहिं पडिसिद्धं । अन्नो भणतिअहं देमि । “जइ अजाणगा भवंती० " गाहद्धं कण्ठ्यम् । सो पुण जइ कहं देइ ? उच्यते - १. यद्देव इ ।
SR No.007786
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages504
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy