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प्रकरण ६ : संयुक्तव्यंजन-विकार
भविष्यति भविस्सइ. (२) ष्व=स्स : पितृष्वसा=पिउस्सिया, मातृष्वसा=माउस्सिया (मावशी)
(इ) स्+अंतस्थ : (१) स्य-स्स : वयस्य = वयस्स’, रहस्य = रहस्स, सस्य = सस्स, आलस्य
= आलस्स. (२) स्र=स्स२ : सहस्र-सहस्स, तमिस्रा तमिस्सा (नरक विशेष), विस्र=विस्स
(कच्च्या मांसाचा वास असलेले) (३) स्व-स्स: सरस्वती सरस्सई, तपस्विन्=तवस्सि, सर्वस्व-सव्वस्स.
९८ अंतस्थ+ऊष्म
कमी बलवान् अंतस्थाचा लोप होऊन अधिक बलवान् ऊष्माचे द्वित्व
होते.४
(१) र्श-स्स : दर्शन५=दस्सण, स्पर्श=फस्स (२) र्ष=स्स : हर्षण=हस्सण
१ अनुस्वारागम झाल्यास : वयस्य वयस २ अनुस्वारागम झाल्यास : षडस्र छलस ३ अनुस्वारागम झाल्यास : मनस्विन् =मणंसि, ओजस्विन् =ओयंसि,
तेजस्विन्तेयसि, ह्रस्व हस. ४ ऊष्मा+ ऊष्म, ऊष्म+अंतस्थ, अंतस्थ+ऊष्म यांच्या समानीकरणाने होणाऱ्या
‘स्स' चे पुष्कळदा सुलभीकरण होते. उदा. : निश्शरण नीसरण, दुश्शासन =दूसासण; अश्व=आस, विश्वास वीसास, ईश्वर ईसर; विश्राम्यति =वीसमइ, मिश्र=मीस; मनुष्य =माणूस, शिष्य=सीस; पश्यति पासइ; हर्ष=हास, वर्ष वास, वर्षा वासा, कार्षापण काहावण;
स्पर्श=फास. ५ अनुस्वारागम झाल्यास : दर्शन दसण ६ (अ) अनुस्वारागम झाल्यास : दुर्धर्ष दुद्धंस (आ) स्वरभक्ति झाल्यास :
हर्ष हरिस