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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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अहा! आत्मज्ञान की महिमा अचिन्त्य है, उस ज्ञान की महिमा भूलकर बाहर के जानपने की महिमा में जीव अटक रहे हैं। संसार के कोई निष्प्रयोजन पदार्थ को जानने में भूल हुई तो भले हुई, परन्तु ज्ञानी कहते हैं कि हमारे आत्मा को जानने में हमारी भूल नहीं होती... हमारे आतमराम को हम नहीं भूलते। यह ज्ञान की मस्ती और निःशङ्कता कोई अद्भुत है ! अनन्त गुणों से परिपूर्ण स्वभाव की प्रतीति का जोर उस ज्ञान के साथ वर्त रहा है। इसलिए ऐसा सम्यग्ज्ञान, वह केवलज्ञान का टुकड़ा है, वह मोक्षसुख का स्वाद चखते-चखते सिद्धपद को साध रहा है।
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