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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 6
उ- आत्मा का अनुभव करनेवाला चैतन्य से भिन्न समस्त परभावों को छोड़ता है और चैतन्यमात्र निज स्वभाव को ग्रहण करता है।
७. प्र- धन्य कौन है ?
उ- जिन्होंने सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा को जाना है - ऐसे ज्ञानी भगवन्त धन्य हैं। कुन्दकुन्दस्वामी भी ऐसे जीवों को धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि
वे धन्य हैं सुकृतार्थ हैं, वे शूर नर पण्डित वहीदुःस्वप्न में को जिनने मलीन किया नहीं। ८. प्र - केवली भगवान के गुणों की स्तुति किस प्रकार होती है ?
उ- आत्मा के ज्ञानस्वभाव में एकाग्रता द्वारा मोह को जीतने से केवली भगवान की सच्ची स्तुति होती है । अतीन्द्रियज्ञानरूप हुए सर्वज्ञ की स्तुति, अतीन्द्रियज्ञान द्वारा ही हो सकती है; इन्द्रियों द्वारा या राग द्वारा नहीं हो सकती है।
९. प्र- गृहस्थ सम्यग्दृष्टि का आत्मा सचमुच किसमें बसता है ?
उ- स्वघर-ऐसा जो अपना शुद्ध चैतन्यतत्त्व, उसके द्रव्य -गुण-पर्याय में ही वास्तव में धर्मी बसता है; राग में या पर में अपना वास वह नहीं मानता, उन्हें वह परघर समझता है ।
१०. प्र- गृहस्थाश्रम में रहनेवाले जीव को आत्मा का अनुभव और ध्यान होता है ?
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